Saturday, October 27, 2012

मनमानी करती उम्मीद की किरणें...


दिल्ली का निगम बोध घाट। नाले में तब्दील हो चुकी यमुना को पूजने के लिए और अपनों के अंतिम संस्कार के लिए यहाँ लोगों का आना-जाना लगा ही रहता हैं। लेकिन, घाट के कुछ दूर आगे ही एक कोनों ऐसा भी है जहाँ लोग कम ही आते हैं। नशेड़ियों और चरसियों का अड्डा माना जानेवाले इस कोने में हरियाली और शुद्ध हवा की कोई कमी नहीं है। आज सुबह जब मैं अपनी टीम के साथ पहुँची तो मेरे सहकर्मियों को थोड़ा तनाव हुआ। लगाकि ये तो कोई ऐसी जगह नहीं है जहाँ आया जाए। लेकिन, यहीं इनके बीच एक टीनशेड के नीचे से हमें बच्चों की हंसी और हुल्लड़ की आवाज़ें सुनाई दी। दरअसल यहाँ बच्चों को कार्टून बनाना सिखाया जाता है। मेरे लिए ये खबर न सिर्फ़ सुर्खियों से परे थे बल्कि अनोखी और सुखद भी थी। हम जब वहाँ पहुंचे तो न सिर्फ़ बच्चे वहाँ बैठे कार्टून की आँख, नाक बनाना सीख रहे थे, बल्कि कई बड़े भी उनके बीच बैठकर कागज और पेंसिल लिए बैठे थे। बातचीत में मालूम चला कि सभी बच्चे आसपास के मोहल्लों में रहते थे और किसी के पापा रिक्शा चलाते थे, तो किसी की मम्मी फूल बनाती थी। बच्चों ने जिस सरलता के साथ अपनी और परिवार की कहानी साफ-साफ सुना दी बड़ों ने नहीं सुनाई। बड़े तो चुप ही रहे। कार्टून बनाने की ट्रेनिंग देनेवाले अनीस ने हमें बताया कि वो पहले नशे में धुत किसी सड़क के किनारे पड़े रहते थे। घरवालों ने घर से निकाल दिया था और चोरी के इल्ज़ाम में वो जेल भी जा चुके हैं। लेकिन, अब सब कुछ छोड़कर वो सुधरना चाहते है। पहले खुद उन्होंने कार्टून बनाना सीखा और अब वो इन बच्चों को ये कला सिखा रहे हैं। इस कार्टून कार्यशाला का मकसद मज़े करना कतई नहीं है। दरअसल इसके ज़रिए वो बच्चों को खुद को अभिव्यक्त करना सीखा रहे हैं। कहानी लिखना सिखा रहे हैं जिससे कि ये बच्चे खुद अपनी एक कॉमिक बुक बना सके। एक ऐसी कॉमिक बुक जिसे एसी की ठंड़ी हवा खानेवाले पढ़े और समझे इनकी ज़िंदगी और इनके दर्द। नशेड़ियों और चरसियों के इस अड्डे के बीच गडे इस टीन के शेड में भविष्य के अंकुरों को कुछ लोग सिरे से नकार सकते हैं। लेकिन, मेरे लिए ये घुप्प अंधेरे में जबरन घुस आई उम्मीद की एक किरण है। 

1 comment:

Haryana said...

well said