Friday, December 21, 2012

कोई तो सर पर हाथ फेर देता...


किसी भी अनजान इंसान की हंसी अब डरा जाती है... सड़क पर ज़रा-सा भी अंधेरा हो तो लगता है कि जैसे कोई पीछा कर रहा है... कोई अनजान पुरुष अगर देख भी ले तो मन अंदर तक घबरा जाता है... आसपास बात कर रहे किसी भी आदमी का लड़कियों के कपड़ों या घूमने-फिरने पर सवाल उठना डरा जाता है। ऐसा महसूस होता है जैसे कि वो कभी भी एक बलात्कारी में बदल सकता है... मदद के लिए कन्नी काटनेवाले लोगों के चेहरे बार-बार नज़र के सामने घूमने लगते हैं... लेकिन, यही मन, मालूम नहीं क्यों आज भी आस लगाए हुए कि- सब कुछ बुरा नहीं है। कुछ तो है जो बचा हुआ है। ऊंगली पर गिन लिए जानेवाले ही सही लेकिन, कुछ लोग तो ऐसे है ही जो इंसानियत को बचाए हुए है। मैं मन को बार-बार समझा रही हूँ कि सब कुछ खत्म हो चुका है, किसी को सभ्य मान लेना और ये कहना कि इंसानियत बाक़ी है खुद को कटघरे में खड़ा कर देने के बराबर है। अखबारों और न्यूज़ चैनलों पर चल रही खबरें और आंकड़ें और सोशल साइट्स पर लोगों का उमड़ रहा गुस्सा। सब कुछ जैसे समझा रहा है कि डरो, आसपास मौजूद हर चीज़ से डरो, अविश्वास रखो हरेक पर, कोई साथ देने नहीं आएगा... लेकिन, मेरा मन मालूम नहीं क्यों ये सुनना चाहता है कि डरो मत अभी भी कुछ बाक़ी है। कुछ है जो अभी बचा हुआ है...
याद करने पर भी मुझे याद नहीं आता है कि मैंने कभी किसी को किसी की आउट ऑफ़ द वे जाकर मदद करते देखा हो। लेकिन, कइयों को मैंने स्वावलंबी और परिस्थितियों से निपटते देखा है। आज, इस वक्त, इस माहौल में मेरा ये कहना कइयों को नाराज़ कर सकता है। मेरा ये कहना कि समाज में अच्छे लोग भी है कइयों को बुरा लग सकता है। लेकिन, फिर भी मेरा मन जो अंदर से हरेक अनजान और परिचित चेहरे से डर रहा है चाहता है कि कोई तो सर पर हाथ फेर देता... बोलता कि डरो मत मैं हूँ। तुम्हारे लिए अनजान ही सही फिर भी तुम्हारा सम्मान करने के लिए। तुम भले ही मेरी माँ, बेटी, बहन या बीवी नहीं फिर भी मैं तुम्हारी इज्ज़त करता हूँ। डरो मत मेरी नीयत इतनी कमज़ोर नहीं कि तुम्हें देखकर डोल जाए। मुझे अपना दोस्त मत मानो लेकिन, हैवान भी मत समझो। कोई तो हो जिसकी अनजान मुस्कान मुझे डराए ना...  

No comments: