Thursday, January 24, 2013

सूर्य का अस्त


 सूर्यास्त को देखकर किसी के मन में क्या आ सकता है? डूबते हुए सूरज को देख कोई एक सुखद दिन की शांत समाप्ति के लिए खुश होता होगा। हो सकता है कोई इंसान डूबते सूरज को देख आनेवाले बेहतर दिन की कामना करता हो। हताश या निराश इंसान उसे अस्त होते देख खुद को भी अस्त होता महसूस करता होगा। किसी प्रेमी को उसमें साथी से मिलन की आशा नज़र आती होगी, तो किसी और को उसमें साथी से बिछड़ने का अहसास होता होगा। एक सूर्य का रोज़ाना, नियमतः होनेवाला अस्त और उदय कितने मायने रखता है हमारी ज़िंदगी में। लेकिन, क्या इस अटल सूर्य को लेकर मन में कभी कोई सवाल उठा है? कुछ दिन पहले, पहली बार महसूस हुआ कि ये जो सूर्य अस्त हो रहा है ये अब फिर नहीं उगेगा। राजघाट पर महात्मा गांधी की समाधि के पीछे दिल्ली के ट्रैफ़िक में सूर्य को डूबते देख लगाकि जैसे मोहनदास करमचंद गांधी की सोच, विचार, नज़रिया सबकुछ डूब रहा है। पहली बार सूर्य के डूबने पर तरस आया। लगा जैसे कि क्या तुम हारकर यूँ शोरगुल में खुद को दफन कर गए। कुछ देर तो ठहरते... हो सकता है कुछ भला ही हो जाता...   

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