Wednesday, May 15, 2013

एंजलिना जौली और भारतीय दिमागी कैंसर...


एंजलिना जौली ने कैंसर के ख़तरे को कम करने के मक़सद से अपने दोनों स्तन निकलवा दिए हैं और उनकी जगह कृत्रिम स्तन लगवा लिए हैं। एंजलिना ने ये सब कुछ कैंसर के खतरे को कम करने के लिए किया है। एक अभिनेत्री होने के नाते उनका शारीरिक सौंदर्य बहुत मायने रखता है, ऐसे में अपनी ज़िंदगी की गुणवत्ता को सुधारने के लिए उठाया गया उनका ये क़दम काबिले तारीफ़ है। एंजलिना का ये कहना है कि उनके इस कदम से बाक़ी महिलाओं को प्रेरणा लेनी चाहिए। लेकिन, हमारे देश में जहाँ महिलाएं अपने शरीर के प्रति शर्माई और सकुचाई रहती है। जहाँ महिला शरीर की सुन्दरता को अपने पति के लिए संवारती हैं और उसके स्वास्थ्य का इतना भर ध्यान रखती है कि घर और बच्चों के सारे काम वो बिना रूके कर सके। वहाँ एंजलिना की सर्जरी पर हो रही चर्चा से पहले बात होनी चाहिए शरीर पर अधिकार की। एक महिला का उसके शरीर पर कितना अधिकार है, वो किस हद तक उससे जुड़े फैसले ले सकती हैं। जहाँ कपड़ों की लंबाई महिलाओं के बलात्कार का कारण हो जाती हो, जहाँ बच्चों का पैदा होना महिला की शारीरिक क्षमता से नहीं परिवार की प्रतिष्ठा से जुड़ा हो, वहाँ इस तरह की सर्जरी पर बात होना ही बहुत ही काल्पनिक है। कैंसर हो सकता है इस आधार पर स्तन या गर्भाशय को निकलवा तो भूल ही जाइए यहाँ तो कैंसर के हो जाने पर भी कई बार महिला पर अंग को न निकलवाने का दबाव बनाया जाता हैं। और, अगर मजबूरी में, जान पर बन जाने पर ऐसा कुछ हो जाए तो महिला को हीन भावना में दबा दिया जाता हैं। उम्र अगर पचास के ऊपर हो तो महिला ही ज़िंदगी बीत जाने का राग अलापने लगती है। एजंलिना को तो जन्मजात ही कैंसर के विषाणुओं ने जकड़ रखा था लेकिन, कइयों को ये बीमारी लापरवाही के चलते होती हैं। खान-पान से लेकर रहन-सहन तक सबकुछ महिलाओं के लिए दूसरे दरजे की चीज़ें हैं। ऐसे में हमारे देश में, ख़ासकर मीडिया में चल रही एंजलिना के साहस की चर्चा का रूख थोड़ा मोड़ा जाना चाहिए। उसे थोड़ा भारतीय बनाना चाहिए। डॉक्टरों के पैनल और बीआरसीए जैसे विषाणुओं पर चर्चा से पहले महिलाओं के उनके शरीर पर हक की चर्चा होना चाहिए। किसी ऐसी महिला से बात होनी चाहिए जो बीमारी के साथ-साथ तिरस्कार भी झेल रही हैं। दिमागी कैंसर का इलाज पहले होना चाहिए... 

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