
हर सपना
सच नहीं होता है इससे बड़ा सत्य अब ये है कि हरेक सपना गंभीरता से लेने लायक नहीं
होता है। सपने की पहले कीमत आंकी जाती है। फिर सपना किसने देखा है ये देखा जाता
है। देखनेवाले की सामाजिक और आर्थिक हैसियत को देखा जाता है। बाबाजी के सपने और
सरकार का उसके प्रति इतना गंभीर हो जाना तो इसका ही नतीज़ा लगता है। हो सकता है
सरकार सोच रही हो कि इतना सोना अगर मिल जाएगा तो इसे के दम पर शायद देश की आर्थिक
दशा सुधर जाए। अर्थशास्त्रियों के नीतियाँ तो इस लायक रही नहीं शायद बाबाजी के
भरोसे ही कुछ भला हो जाए। वैसे इन सपनों की एवज में कई और सपनों को पूरा करवाया जा
सकता हैं। जैसे कि
#ऑफिस में आप आराम से सो सकते हैं। अगर बॉस उठाए
तो बोलिए मैं चैनल के टीआरपी में नबंर एक पर होने का सपना देख रहा था।
#अगर आप किसी की बातों से बोर हो रहे हैं और सो गए
हैं तो आप बोल सकते हैं कि मैं तो आपको एक प्रखर वक्ता के रूप में ऑक्सफोर्ड में
आप भाषण देते देख रहा था।
#अगर आप क्लास में सो गए हैं तो शिक्षक को बोल
सकते हैं कि मैं तो सपने में आपको प्रिंसीपल बने देख रहा था। आदि-आदि
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