Sunday, October 20, 2013

कैंसर का होना ज़िंदगी का अंत नहीं...

   वजह भले ही कार्यक्रम के सिलसिले में शूट करने की हो लेकिन, रविवार की सुबह दिल्ली के एम्स में कटेगी इस बात को सोचकर ही मन थोड़ा-सा घबरा-सा जाता है। दरअसल ये पूरा महीना ही पिंक अक्टूबर के नाम से मनाया जा रहा है। मतलब इस पूरे महीने अस्पताल और संस्थाएं मिलकर ब्रेस्ट कैंसर के प्रति लोगों को जागरूक करने का काम जोर-शोर से कर रही हैं। मेरे परिवार में कई कैंसर के मरीज़ों को मैं देख चुकी हैं। इसी के चलते कैंसर के बारे में जागरूकता फैलाने का कोई भी मौक़ा मैं नहीं छोड़ती हूँ। आज भी मौक़ा था कुछ ब्रेस्ट कैंसर से जूझ रही महिलाओं और उनके डाक्टर्स से मिलने का। गुलाबी रंग के कपड़े पहनी ये सभी महिलाएं ब्रेस्ट कैंसर जैसी बीमारी से दो-दो हाथ कर चुकी थी। सभी के चेहरों पर विजेताओंवाली मुस्कान साफ देखी जा सकती थी। खास बात ये थी इन सभी के साथ इनके परिवार के सदस्य भी मौजूद थे। ज्यादातर महिलाएं अपने पतियों के साथ नज़र आई। जैसे ही इस छोटे से कमरे एम्स के नवनियुक्त डायरेक्टर एन सी मिश्रा आए वैसे ही सभी ने तालियों के साथ उनका स्वागत किया। एक डाक्टर और उनकी टीम के लिए लोगों को ये उत्साह और सम्मान मेरे लिए नया और अनूठा था। एक सरकारी अस्पताल के डाक्टर और उस अस्पताल में मिलनेवाली सुविधाओं के प्रति जो हमारी धारणा है उससे बिल्कुल उलट यहाँ हर तबके मरीज़ों ने इन डाक्टर्स की टीम के लिए दिल खोलकर तालियाँ बजाई। लगभग हर डाक्टर ने आज के अस्त-व्यस्त जीने के तरीक़े को कैंसर का मुख्य कारक माना। महिलाओं का खुद के प्रति लापरवाह होना और परिवार से सहयोग का कम मिलना भी महिलाओं में होनेवाले कैंसर खासकर ब्रेस्ट कैंसर के देर से मालूम चलने का कारण हैं। बीमारी के इतने सारे कारणों और हमारे समाज के नकारात्मकताओं के बीच ही यहाँ मैं मिली बेला माथुर और उनके पति से। बेला को लगभग सत्ताइस साल पहले ब्रेस्ट कैंसर हुआ। उस वक्त उनका बेटा छः महीने का था। उस वक्त डाक्टर्स के मुताबिक उनके पास केवल छः महीने और थे। लेकिन, एक सरकारी अस्पताल में, सरकारी डाक्टर्स पर औऱ उनके इलाज पर भरोसा और परिवार के सहयोग से आज बेला एकदम स्वस्थ है और अपने बेटे की शादी की तैयारियों में लगी हुई हैं। यहीं मैं एक बार फिर अनुराधा से मिली। उनके साथ इसी मुद्दे पर मैं पहले भी एक कार्यक्रम बना चुकी हूँ। कैंसर के होने और उससे निपटने के तरीकों और अपने अनुभवों को अनुराधा बेहद ही सधे हुए शब्दों में लोगों तक पहुंचाती है। अपने ब्लॉग, फेसबुक और अपनी किताब के ज़रिए वो कैंसर से जूझ रहे लोगों खासकर महिलाओं को एक नया आत्मविश्वास देने का काम कर रही है। कुल जमा आज की मेरी सुबह बेहद शानदार और ज्ञानवर्धक रही...

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