Wednesday, December 11, 2013

नाम संक्षिप्त न करें मान्यवर... -राजा दुबे

वरिष्ठ फिल्म समीक्षक और मेरे मित्र सुनील मिश्र का सदी के महानायक अमिताभ बच्चन से सम्वाद का रिश्ता है मगर मेरे जैसे ई-लेट्रेट लेखक जो ई-मेल और लेपटॉप के से खौफ खाते हैं और ब्लॉग, फेसबुक और टि्वटर के कखग से भी नावाकिफ हैं उनके पास अपनी बात अमिताभ बच्चन तक पहुँचने का एक ही माध्यम बचता है और वो है अखबार।
हमारे जैसे लेखकों की सफेद कागज पर स्याही से लिखकर भेजी गई सामग्री को गुण दोष के आधार पर छाप रहे हैंबावजूद इसके कि यदि यही सामग्री यूनीकोड में टाईप कर ई-मेल से भेजी जाती तो छापने में आसान होती।
बहरहाल किस्सा-कोलाह यह है कि अमिताभ बच्चन अपने पिता हरिवंश राय बच्चन की स्मृति में एक ट्रस्ट (न्यास) की स्थापना करने जा रहे हैं जिसका नाम होगा हरिवंशराय बच्चन मेमोरियल ट्रस्ट। स्ववम् अमिताभ बच्चन इस स्ट्रट को ''एच.आर.बी.एफ. ट्रस्ट'' के नाम से सम्बोधित कर रहे हैं। ट्रस्ट की स्थापना उसके उद्देश्य और उसके औचित्य पर मैं कोई सवाल नहीं उठा रहा हूँ मगर ट्रस्ट के नाम के संक्षिप्तीकरण पर मुझे ऐतराज है। देश विदेश के संगठनों के नाम का संक्षिप्तीकरण हो तो चलेगा यू.एन.ओ., यूनीसेफ, यू.एस.ए.यू.के., कॉमन वेल्थ, डब्ल्यू.एच.ओ., आई.सी.सी. जैसी बीसियों संक्षिप्तीकृत नाम चल रहे हैं मगर व्यक्तियों के नाम के संक्षिप्तीकरण हमेशा से मुझे नागवार गुजरे हैं।
देशभर में महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के नाम पर एम.जी. रोड और जवाहर मार्ग का जाल बिछा है और जयपुर में तो जवाहरलाल नेहरू भी जे.एल.एन. मार्ग हो गये हैं। संक्षिप्तीकरण का पहला अजीबो गरीब उदाहरण मुझे भोपाल में देखने को मिला जहाँ मध्यप्रदेश के पहले कांग्रेसी मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ला के ना से बने शॉपिंग मार्केट को संक्षिप्त में आर.एस.एस. मार्केट कहा जाने लगा। इतना ही नहीं अमर शहीद तात्या टोपे के नाम पर बसे टी.टी. नगर के बारे में कई लोग यह पूछते नजर आये कि क्या यहाँ रेल्वे के टी.टी. बसाये गए हैं?
रे ननिहाल उज्जैन में एक कॉलोनी हैं देसाईनगर। इस बस्ती के बारे में मुझे कई सालों तक लगता रहा यह पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी भाई देसाई के नाम पर ''देसाई नगर'' बसा होगा। मेरे नानाजी ने मेरा यह भ्रम तोड़ा और बताया यह केन्द्रीय श्रम मंत्री रह चुके खण्डूथाई देसाई के नाम पर बसा - 'देसाई नगर' है।
वरिष्ठ कवि और राजनेता बालकवि बैरागी ने मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा को जब वे मन्दसौर में डॉ. कैलाशनाथ काटजू कृषि महाविद्यालय का उद्धाटन करने आये थे तब होना था - ''वोराजी मेहरबानी करके इसके संचालकों को यह हिदायत दीजिये कि वे हमेशा पूरा नाम लिखें - कैलाशनाथ काटजू - वरना इसे भी के.एन.के. एग्रीक्लचर कॉलेज कहा जाने लगेगा जैसे सीहोर का कृषि विश्वविद्यालय आर.ए.के. एग्रीकल्चर कॉलेज पुकारा जाता है और कॉलेज में पढ़ने वाले छात्र साल दो साल में जान पाते है कि आर.ए.के. का पूरा अर्थ रफी अहमद किदवई है जो केन्द्र सरकार में कृषि मंत्री रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में भी संक्षिप्त नामों के कारण भारी गलतफहमियाँ थीं। रायपुर के रविशंकर विश्वविद्यालय के बारे में अरसे तब जक यह माना गया कि यह विश्वविद्यालय प्रसध्दि संगीतकार रविशंकर के नाम पर है तब बाकायदा विधानसभा में उसका नामकरण पण्डित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय होगा इस आशय का संकल्प पारित करवाया गया। पण्डित रविशंकर शुक्ल अविभाजित मध्यप्रदेश जिसका छत्तीसगढ़ एक हिस्सा था, के पहले मुख्यमंत्री थे। इन्दिरा संगीत विद्यालय के साथ भी यही है खैरागढ़ (छत्तीसगढ़) का यह संगीत विश्वविद्यालय भी श्रीमती इन्दिरा गांधी के नाम पर नहीं खैरागढ़ की महारानी इन्दिरा देवी के नाम पर है।

अस्तु, मान्यवर अमिताभ बच्चनजी आप बाबूजी के नाम पर बने ट्रस्ट को हरिवंशराय 'बच्चन' ट्रस्ट ही रहने दें एच.आर.बी. ट्रस्ट न बनायें - वो किसी ब्राण्ड नेम जैसा लगेगा और बाबूजी की आत्मा भी उससे दुखी होगी।
लेखक- राजा दुबे

No comments: