Tuesday, January 7, 2014

वो नई माँ है

नई माँ
वो नई माँ है। छः महीने पहले ही तो बनीं हैं बस। जब से बेटी ने घुटने-घुटने चलना और ज़ोर-ज़ोर से रोना सीखा है तब से ही उसे माँ बनने का मतलब समझ आने लगा हैं। वैसे तो पत्नी भी वो नई ही है अभी शादी को दो साल भी पूरे नहीं हुए है। वो पति को समझने की कोशिशों में ही लगी हुई थी कि बेटी आ गई। बेटी भी फिलहाल हर अपनी हर बात की अभिव्यक्ति रोकर, और रोकर, और ज़्यादा रोकर देती हैं। और, उसका ये रोना आसपास के लोगों को उसकी ओर खींच लाता हैं। हरेक का बस एक सवाल- अरे! क्या हुआ बच्ची को?? रो क्यों रही है ये??  बच्ची के रोने और आसपास के सवालों से वो नई माँ घबरा-सी जाती है। उसका पूरा ध्यान इस बात पर लग जाता है कि बच्ची रोए ना। बच्ची के रोने और लोगों के सवालों से वो खुद को हारा हुआ-सा महसूस करने लगती हैं। उसके रोते ही वो उसे चुप करने के जतन करने लगती है। कभी कुछ लालच से कभी एकदम खीज में उससे बोलती है- क्यों रोती है तू? क्या हुआ है? सबकुछ तो सही है??? नई माँ कि इन परेशानियों में उसके पति की भूमिका नगण्य है। उसके होने या ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। बाप बच्ची के रोने पर सोना, सोना, क्या हुआ सोना.... इन चुने हुए शब्दों के अलावा कुछ नहीं बोलता हैं। बच्ची को चुप कराने की ज़िम्मेदारी पूरी तरह से माँ की हैं। नई माँ थकी हुई-सी लगती हैं। नई नई पत्नी बनीं ये लड़की अभी समझ ही रही थी कि पति आखिर होता क्या है। घर में अकेले रहा कैसे जाता हैं। घर को संभालना क्या बला है कि इन सब के बीच उसकी सोना आ गई। एक साथ इतने सारे रिश्तों को समझने और संभालने की झंझट में उलझी हुई-सी लगती हैं मेरी पुरानी पड़ोसन, जो एक नई माँ है... 

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