Tuesday, January 14, 2014

अहसासों के बीच...


हाँ... मैं भी नया हूँ इस शहर में। फिलहाल दोस्तों के साथ रह रहा हूँ। ढ़ेर सारे दोस्तों के साथ ( उसके चेहरे पर एक फीकी-सी हंसी थी)।

 ये उनकी पहली मुलाकात थी। वो दोनों ही इन्टव्यू देने आएं थे। और, दोनों ही चाहते थे कि ये नौकरी उन्हें मिल जाएं। पहले राउन्ड में चुने जाने के बाद दोनों बस यूँ ही एक साथ कॉफी पीने बाहर आ गए थे। इस थोड़ी-सी बातचीत में ही दोनों को ये मालूम चला गया था कि एक दूसरे के साथ वो बहुत कम्फर्टेबल महसूस करते हैं। बातचीत हुई, एक दूसरे के बीच नबंरों की अदला-बदली भी हो गई और दोनों ही फिर से इंटरव्यू की जंग में उतर गए।

 दो हफ्ते बाद जब वो जॉइन करने ऑफिस पहुंची तो उसे मालूम चला कि उसे नौकरी नहीं मिली हैं। अपनी नौकरी के साथ-साथ उसे नौकरी ना मिल पाने का दुख भी हुआ। एक दिन उसने उसे यूँ ही फोन किया मालूम चला कि वो भी कहीं और नौकरी पा चुका है। दोनों ने एक बार फिर मिलने का फैसला किया। बातचीत के दौरान दोनों ने ही खुद को रूममेट्स के बीच में फंसा हुआ पाया। दोनों ही छोटे शहरों और बड़े परिवारों से निकलकर आए थे। और, दोनों ही खुद के साथ रहना चाहते थे बस।

 अगली मुलाकात में उसने ही फ्लैट शेयर करने का प्रस्ताव रखा। वो थोड़ी-सी चौंक गई। लेकिन, वो जानती थी कि ये साथ, अकेले रहने के लिए ज़रुरी है। दोनों में से कोई भी इस बड़े से शहर का छोटा-सा घर अकेले अफोर्ड नहीं कर सकता हैं।

 हफ्तेभर के अंदर ही दोनों एक ही फ्लैट में अपनी अलग-अलग ज़िंदगी जी रहे थे। अपने-अपने कमरों, कॉमन बरामदे, बालकनी और किचन के बीच दोनों एक-दूसरे के साथ रहते हुए भी अपनी-अपनी ज़िंदगी और कामों में व्यस्त थे। साथ रहते हुए भी अलग-अलग सी ये ज़िंदगी उन्हें पसंद आ रही थी।

 एक दिन वो यूँ ऑफिस नहीं गई। घर पर ही आराम कर रही थी। शाम होते-होते उसे बस यूँ ही उसके आने का इंतज़ार हो गया। उसे कुछ अजीब-सा लगा। वो अपने समय पर आया और, दोनों के लिए कॉफी बनाकर हमेशा की तरह बालकनी में आ गया। दोनों ने यहाँ-वहाँ कि बातें की और दोनों ही अपनी-अपनी परिधि में चले गए। इस दिन के बाद उसे कई बार उसके आने का इंतज़ार रहने लगा। थोड़ी-सी चिंता, थोड़ा-सा प्यार, थोड़ा-सा सब कुछ।

 एक दिन अचानक ही कॉफी पीते हुए उसने बताया कि उसके घर से फोन आया था ये पहली बार था जो उसने अपने घर की बात की थी। साथ रहते हुए उन्हें एक साल होने को आया था। वो यूँ ही अकेले अपने अहसासों के साथ थी। और, उन दोनों की ज़िंदगी यूँ ही ऑफिस और बालकनी की कॉफी के बीच चल रही थी। दोनों की ही आर्थिक स्थिति अब अकेले रहने लायक हो गई थी। फिर भी दोनों चुप थे। एक दिन अचानक ही उसने कहा-  हाँ... मैं कल ही निकल रहा हूँ। घर से जो कुछ महीने पहले फोन आया था वो शादी के लिए ही था। दो हफ्ते बाद की तारीख तय हुई है। तुम यहाँ रह सकती हो लेकिन, मैं आने के बाद कुछ दिन फिर उन्हीं दोस्तों के साथ रहूँगा उसके बाद देखते हैं।

इस बार वो चुप नहीं शांत थी। दोनों ने कुछ यहाँ-वहाँ कि बातें की और फिर दोनों ही अपनी-अपनी परिधि में चले गए... 


    

1 comment:

Anonymous said...

this story lacks the depth which should be the essence of any story.the whole thing is narrated in a very flat manner, wherein it should have affected the reader.