Wednesday, December 10, 2014

सर्द रात...

ऑफिस में काम करते-करते कब नौ बज गए उसे मालूम भी ना पड़ा। कम्प्यूटर से आंखें हटकर जैसे ही खिड़की की ओर गई वो चौंक गई।
अरे बाप रे... आज तो बहुत देर हो गई। घर पहुंचते-पहुंचते तो ग्यारह बज जाएंगे। वो भी तब जब समय पर ऑटो मिल जाए तब। काम की हड़बड़ी में वो ऑफिस कैब के लिए मेल करना भी भूल गई थी। और, रात नौ बजे एच आर से किचकिच करना उसके बस में नहीं था।
उसने फटाफट अपना काम समेटना शुरु किया। सोचा कि देर तो हो ही रही है। एक कॉफी और पी ली जाएं।
उसने आवाज़ लगाई- महेशजी, एक कॉफी।
महेशजी दौड़ते हुए कॉफी ले आए। बड़े प्यार से टेबल पर रखी और चिंता जताते हुए वो बोले- इतनी देर तक मत रुका कीजिए। खासकर जाड़े के इन दिनों में।
जिस बात को लेकर संशय में थी महेशजी ने उसे ही छेड़ दिया था। वो दिल्ली की इस सर्द रात में अकेले घर जाने के अपने इस डर को दबाए रखने की कोशिश में बस हल्का-सा मुस्कुरा दी। सिस्टम बंद करके, सारी फाइलें समेटकर जब वो ऑफिस से निकल रही थी तब तक घड़ी में सवा नौ बज चुके थे। ऑफिस मेन सड़क से कुछ दूरी पर था। सो, उतना रास्ता तो चलकर जाना मजबूरी थी। मेन सड़क पर पहुंचते ही उसने ऑटो की खोज शुरु कर दी।
वो मन ही मन सोचने लगी- सात बजे इसी सड़क पर कितने ऑटोवाले मिल जाते है। एक को हाथ दो तो चार आ जाते हैं। और, अभी देखो एक भी नहीं मिल रहा हैं।
तभी एक ऑटो सामने से निकला। उसने हाथ दिया लेकिन, वो रुका नहीं। इसी इंतज़ार और रोका-रोकी में साढ़े नौ हो गए। उसके दिल की धड़कन इतनी तेज़ थी कि वो क्या आसपास खड़ा कोई भी उसे सुन ले। चेहरे से घबराहट को हटाने की नाकाम कोशिश के साथ वो फिर ऑटो का इंतज़ार करने लगी। तभी उसे एक ऑटो आता दिखा। उसने हाथ, जैसे ही वो रुका। वो झट से उसमें बैठ गई।
ऑटोवाला बोला- अरे मैडम ये तो बताओ जाना कहाँ हैं?
वो बोली- भैया मयूर विहार फेस वन।
ऑटोवाला बोला- अरे वो तो मेरे लिए उल्टा पड़ जाएगा। नहीं मैं नहीं जाता।
वो बोली- क्या भैया नाइट चार्ज भी ले लेना। अब चलो... रोज़ का है ये तो आप लोगों का।
ऑटोवाला ने कुछ बड़बड़ाते हुए ऑटो स्टार्ट किया।
दिल्ली में ठंड कुछ बढ़ी हुई-सी महसूस हुई उसे। उसने बैग से शॉल निकाल ली। वो सोचने लगी कि कैसा ये शहर है साढ़े नौ बजे ही सुनसान हो जाती है सड़कें। हमारे इंदौर में तो इस वक्त हम अकेले ही काले घोड़े तक पानी-बताशे खाने चले जाते थे। कितने लोग मिल जाते थे पहचान के। सच में जितना बड़ा शहर, उतना तंग उसका व्यवहार।
तब भी ऑटोवाले का फोन बज उठा। उसने हाँ-ना में कुछ बात की। ऑटो को किसी दूसरी सड़क पर ही मोड़ लिया। वो अचानक से घबरा गई।
ज़ोर से चिल्लाई- कहाँ जा रहे हो... कहाँ ले जा रहे हो...
ऑटोवाला कुछ नहीं बोला।
वो फिर चिल्लाई- लगाऊं क्या 100 नबंर पर फोन। रोको ऑटो...
ऑटोवाले दनदानाते हुए ऑटो को एक बस्ती में घुसा दिया। और, अंधेरी-सी एक गली में एक घर के सामने रुक गया।
पीछे बैठे हुए उसका चेहरा अबतक पीला हो चुका था। जैसे ही ऑटो रुका वो कूदकर बाहर निकली। वो कुछ बोले उसके पहले ऑटोवाला उस घर में घुसा और बस दो पल में ही बाहर आ गया।
बोला- बैठा मैडम जल्दी।
उसकी हालत ऐसी थी कि वो चाहकर भी कुछ बोल ना पाई और, चुपचाप ऑटो में बैठ गई। उसके मन में दिल्ली में लड़कियों के साथ होनेवाली सारी घटनाएं घूमने लगी। मम्मी की हिदायतें, दोस्तों की सलाह सबकुछ कानों में गूंज रही थी। उसका आत्मविश्वास जैसे उस बस्ती की तंग और अंधेरी गलियों में खोता जा रहा था। सर्द हवा ने उसके चेहरे के साथ पूरे शरीर को सुन्न कर दिया था।
तब ही अचानक ऑटो झटके से रुका। ऑटोवाले ने पलटकर उसकी ओर देखा और पूछा- मैडम आ गए। अब कौन से ब्लॉक में ले जाऊं।
वो हड़बड़ाकर बोली- डी ब्लॉक।
घर के आगे जब ऑटो रुका तो एक मशीन की तरह वो उससे उतर गई। उसने पांच सौ का नोट उसे थमा दिया। ऑटोवाले ने अपने पैसे काटे और बाक़ी के लौटा दिए। उसने देखा कि उसने नाइट चार्ज नहीं काटा है।
वो बोली- भैया नाइट का नहीं लिया।
ऑटोवाला बोला- नहीं मैडम। आपका मेरी वजह से देर हो गई। असल में मेरी बच्ची बीमार है उसी के लिए मैं दवा लेकर घर जा रहा था। आपको अकेले खड़ा देखा तो रुक गया। सोचा आप मेरी ओर ही रहती होगी तो ले जाउंगा। बीवी का फोन आ गया था रास्ते में दवा की सख्त ज़रुरत थी। सो मैंने बिना बताएं ही ऑटो घर की ओर मोड़ लिया था। माफ़ किजिएगा मैडम मेरी वजह से आपको देर हो गई।
इतना बोलकर उसने ऑटो घुमाया और वो चला गया....

1 comment:

Kaushal Verma said...

Bahot acha likha hai... dar is had tak sama gaya hai ki rassi bhi sanp hi nazar ati hai... likhti raho