Thursday, June 11, 2020

महामारी के माहौल और मुफलिसी में एक मशहूर छायाकार का अवसान

कहते हैं राजकपूर की केमेस्ट्री अपने को-स्टार और तकनीशियन के साथ बड़ी अच्छी रहती थी. बूटपालिश फिल्म के कैमरामैन वैद्यनाथ बसाक के साथ तो वे एक- एक फ्रेम पर जमकर बातचीत करते थे. राजकपूर अपनी फिल्मों के लिये तकनीशियन के चयन में भी उतने ही सजग रहते थे जितने सजग गीतकार, संगीतकार और कास्टिंग के मामले में सजग थे. वे अपनी फिल्मों के लिये कैमरामैन का चयन भी काफी सूझ-बूझ और सजगता के साथ करते थे. उनकी इसी खूबी को ताड़कर फिल्म बूट पालिश में उनके साथ छायाकार (सिनेमाटोग्राफर) रहे बैद्यनाथ बसाक ने जब फिल्म के कुछ दृष्यों के पुन: फिल्मांकन का आग्रह किया तो राजकपूर ने उनके आग्रह को न सिर्फ स्वीकार किया बल्कि प्रकाश अरोड़ा के निर्देशन में बनीं इस समूची फिल्म को अपने नजरिये से कमोवेश दोबारा  फिल्माया . बूट पालिश को जब कांस अंतराष्ट्रीय फिल्म समारोह में सराहना मिली तो राजकपूर ने इसके लिये बैद्यनाथ बसाक को इसका श्रेय दिया कि मेरे कैमरामैन ने यदि कुछ जरुरी फेरबदल नहीं सुझाये होते तो यह फिल्म इतनी अच्छी नहीं बन पाती. आज न तो इतनी खुलकर तारीफ करने वाले राजकपूर-से फिल्मकार बचे हैं और न खुलकर अपनी बात कहने वाले बैद्यनाथ बसाक रहे.

चार कम सौ वर्षों यानी 96 वर्ष की उम्र में पाँच जून को राज कपूर की फिल्म 'बूट पॉलिश' के कैमरामैन बैद्यनाथ बसाक का कोलकाता में निधन हो गया. पिछले कई सालों से आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे और जैसा कि कोलकाता से फोन पर बात करते हुए बैद्यनाथ बसाक के पोते राकेश ने एक न्यूज़ चैनल से बताया कि दादाजी की पांच जून को दोपहर 3 बजे नींद में ही मौत हो गई. कई दिनों से उनकी तबीयत खराब चल रही थी. चार दिन पहले उन्हें हल्के किस्म का लकवा भी आया था, जिससे उनके एक हाथ और पैर ने काम करना बंद कर दिया था. कोरोना वायरस और लॉकडाउन के चलते हम उन्हें किसी अस्पताल में भी नहीं ले जा सके, लेकिन रात 8 बजे हमें एक डॉक्टर का अपॉइंटमेंट मिला था मगर अस्पताल ले जाते, उससे पहले ही उनका निधन हो गया - ए सैड पैक अप. 

दरअसल महामारी के माहौल और मुफलिसी ने एक बड़े सिनेमाटोग्राफर को हमसे छीन लिया. बैद्यनाथ बसाक के बेटे संजय बसाक केे अनुसार हम कई सालों से पैसों की तंगी से जूझ रहे थेे .वर्ष 2018 में तृणमूल कांग्रेस के सांसद और अभिनेता देव अधिकारी की ओर से हमें आर्थिक मदद मिली थी, मगर फिल्म इण्डस्ट्री से कोई मदद नहीं मिली मगर  उन्हें इसका ज्यादा अफसोस नहीं रहा.लॉकडाउन में काम बंद होने के चलते हम एक कमरे के किराये के 
मकान में रहते हैं जिसका 2500 रुपये का मासिक किराया हम कई  बार नहीं चुका पाते थे.बैद्यनाथ बसाक के पोते राकेश जहाँ एक वीडियो एडिटर हैं, वहीं उनके बेटे संजय बसाक छोटा-मोटा काम करके अपना गुजारा करते हैं, लेकिन लॉकडाउन के चलते काम नहीं मिलने से दोनों की आर्थिक मुश्किलें कई गुना बढ़ गईं हैं.

राजकपूर की बूट पॉलिश के अलावा, बैद्यनाथ बसाक ने मनोज कुमार की फिल्म "हरियाली और रास्ता"  तथा  "कितने दूर कितने पास" में भी बतौर कैमरामैन काम किया था. बाद में मुम्बई में काम के अभाव में उन्होंने शहर छोड़ दिया था और वापस कोलकाता चले गये थे. वहाँ पर उन्होंने कई बांग्ला फिल्मों के लिए सिनेमाटोग्राफी की, जिनमें बांग्ला के जाने-माने हीरो उत्तम कुमार की कई चर्चित फिल्मों- खोकाबाबुर, प्रत्याबर्तन, सपार उपारे, छड़माबेशी आदि शामिल हैं. सिनेमाटोग्राफर के तौर पर " पार 00उनकी आखिरी फिल्म थी. जो शोहरत उन्हें हिंदी फिल्मों से नहीं मिली, वो उन्हें बांग्ला फिल्मों से हाँसिल हुई, मगर आर्थिक तंगी ने मरते दम तक उनका पीछा नहीं छोड़ा.

बैद्यनाथ बसाक हिन्दी, अंग्रेजी और बांग्लादेश भाषा की पर्याप्त समझ रखते थे और अक्सर हिन्दी फिल्मों के गीत और गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगौर की कविता गुनगुनाया करते थे. हिन्दी फिल्म "अनाड़ी" का गीत "सब कुछ सीखा हमने, ना सीखी होशियारी, सच है दुनिया वाले कि हम हैं अनाड़ी" उन्हें बहुत पसंद था.सचमुच बैद्यनाथजी बदलते वक्त की जरुरतों को नहीं समझ पाये और नये दौर से सामंजस्य न बैठा पाने के कारण अनाड़ी ही साबित हुए. 

राजा दुबे

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