Monday, June 22, 2020

स्वर की दिव्य अनुगूँज ने बनाया हेमंत कुमार को एक अप्रतिम गायक


हेमंत कुमार एक गायक, एक संगीतकार और एक फिल्म निर्माता की तिहरी भूमिका मे जब हिन्दी और बाँग्ला फिल्मों के फलक पर उभरे तो गायकी वाला तत्व सर्वोपरि रहा. एक संगीतकार के रुप में भी उनकी अलहदा पहचान बनी मगर फिल्म निर्माण वाला पक्ष उनके गायक और संगीतकार की आभा के तले उभर नहीं पाया. हेमंतकुमार के स्वर में जो दिव्य अनुगूँज और गहन आध्यात्मिकता का पुट है उसने उन्हें एक विशिष्ट पहचान दी. यह उनका स्वर माधुर्य और दिव्यता की अनुभूत पकड़ ही थी जिसके कारण उनके गायक ने सुनने वालों को अभिभूत कर दिया. यह उनके गायन की विशिष्टता ही थी कि सलिल चौधरी जैसे नामवर संगीतकार ने यह  कहा कि - "ईश्वर को हमने कभी गाते हुए तो नहीं सुना मगर यदि ईश्वर गाते तो उनकी आवाज़ हेमंत कुमार जैसी ही होती  स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर भी यह कहती थीं कि - "उनको सुनते हुए हमेशा ही यह लगता है कि जैसे कोई साधु मंदिर में बैठकर गीत गा रहा हो " इन दोनों कथनों से यह साबित होता है कि  हेमन्त कुमार एक ऐसे असाधारण गायक थे जिनकी आवाज़ की सात्विक आभा से दिव्यता झलकती थी और जो अपने शुद्धतम रूप में ईश्वरीय खनक के नज़दीक लगती थी.
सच तो यहहै कि स्वर की दिव्य अनुगूँज ने ही हेमंत कुमार को एक अप्रतिम गायक बनाया. गायन ही नहीं ं उनका संगीतकार वाला व्यक्तित्व भी  दिव्य और
अलौकिक रहा  वे हमेशा ही अपनी  धुनों से ऐसी सात्विक रंगत पैदा करते जो इस शोरगुल वाले समय में बड़ी मुश्किल से मिलती है. हेमंत कुमार का जन्म 16 जून 1920 को वाराणसी में हुआ था. उनका परिवार पश्चिम बंगाल के बहारू गांव से संबंध रखता था .बीसवीं सदी के शुरुआती दिनों में ही उनका परिवार कोलकाता आकर बस गया.हेमंत कुमार कोलकाता में ही पले-बढ़े और यहीं शिक्षा पाई. यहीं उनकी मुलाकात उनके गहरे दोस्त सुभाष मुखोपाध्याय से हुई जो बाद में लेखक बन गए .इंटरमीडिएट पास करने के बाद हेमंत कुमार ने यादवपुर विश्वविद्यालय में अभियांत्रिकी की पढ़ाई के लिए प्रवेश लिया, लेकिन संगीत के क्षेत्र में कैरियर बनाने के लिए उन्होंने अभियांत्रिकी छोड़ दी.कुछ दिनों तक उन्होंने साहित्य में भी हाथ आजमाया और उनकी कई लघुकथाएं बंगाली पत्र-पत्रिकाओं में छपी. लेकिन तीस के दशक में उन्होंने स्वयं को संगीत के प्रति समर्पित कर दिया.

संघर्षपूर्ण शुरुआत के बाद रवीन्द्र संगीत से आया ठहराव
 
सदाबहार गीतों के शहंशाह हेमन्त कुमार, जिनका पूरा नाम हेमंत कमार मुखोपाध्याय था उनके लिये गायकी और संगीत मे सफलता का सफर आसान नहीं रहा. शुरुआती दिनों में तमाम रेकॉर्ड कम्पनियों द्वारा उनके ऑडिशन ठुकरा दिए गये.इस निराशा को मिटाने के लिए बांग्ला भाषा की मशहूर पत्रिका " देश " में उन्होंने कहानियाँ लिखनी शुरू कर दीं. इस बीच इनका रुझान गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की कविताओं के प्रति बढ़ा और शायद इसी से संघर्षपूर्ण शुरुआत के बाद रवींद्र संगीत से उनके कैरियर में ठहराया आया. विस्मय इस बात का था कि उनके पिता कालिदास मुखर्जी , जो एक शिपिंग कम्पनी में मुलाजिम थे , वे और उनके समेत तमाम दूसरे लोग भी अनभिज्ञ थे कि हेमन्त, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की कविताओं से न सिर्फ़ प्रभावित हैं बल्कि उनकी ढेरों रचनाएँ उन्हें कण्ठस्थ भी हैं. गुरुदेव के प्रति उनकी अगाध आस्था के चलते ही हेमंत कमार ने वर्ष 1954 में रिलीज़ अपनी पहली व्यावसायिक रुप से सफल फिल्म - " नागिन " की जो घर बनाया, उसका नामकरण भी गुरुदेव की महान कृति 'गीतांजलि' के नाम पर ही रखा.

आनन्दमठ फिल्म से बनी थी उनकी पहचान

इसे नियति का खेल ही कहेंगे कि जिन हेमंंत कमार को अपनी किशोरावस्था में तमाम रिकार्डिंग कम्पनियों ने यह कहकर वापस लौटा दिया था कि उनकी आवाज़ गायन के लिए उपयुक्त नहीं है, उनमें से ही एक  प्रसिद्ध कोलम्बिया म्यूजिक कंपनी ने हेमन्त्त कमार से प्रभावित होकर एक ही वर्ष में रवीन्द्रनाथ टैगोर के गीत उनकी आवाज़ में रिकॉर्ड करके बिक्री के लिए उतारे. हेमंत कुमार ने अपने सांगीतिक सफर में जिन बड़े संगीतकारों से आत्मीय रिश्ते बनाए, उनमें कमल दासगुप्ता, पण्डित अमरनाथ, सलिल चौधरी जैसे दिग्गज शामिल थे. उन्हें संगीतकार के रूप में पहचान दिलाने वाली पहली पहली प्रतिनिधि फ़िल्म वर्ष 1952 में रिलीज़ - आनंदमठ थी. यह भी एक दिलचस्प तथ्य है कि पण्डित अमरनाथ के संगीत-निर्देशन में उन्हें पहली बार वर्ष 1944 में हिन्दी फ़िल्म " इरादा " में गायन का अवसर मिला.हेमंतकुमार रवीन्द्र संगीत से प्रभावित ऐसे गायक रहे हैं जिनकी शुरुआती गायिकी में न्यू थिएटर्स के पंकज मलिक का प्रभाव साफ तौर से देखा जा सकता है.इसी के चलते वे ख़ुद को  " छोटा पंकज _ कहलाना पसन्द करते थे. बाद में इस प्रभाव से बाहर निकलने में उनके मित्र और प्रयोगधर्मी संगीतकार सलिल चौधरी ने मदद की .  हेमन्त कुमार की संगीत की विशिष्टताओं के लिए यदि कुछ चुनिन्दा फ़िल्मों का चयन करना हो तो उसमें शिखर पर रखी जाने वाली फ़िल्मों में आनन्दमठ , नागिन ,दुर्गेशनन्दिनी , ताज, साहब बीबी और गुलाम,  बीस साल बाद. बिन बादल बरसात, कोहरा , मिस मेरी, अनुपमा और ख़ामोशी आयेगी. इस पारखी संगीतकार की संगीत की मौलिक दृष्टि के पीछे उस्ताद फैयाज़ खान, निरापद मुखर्जी, पाँचू गोपाल बोस तथा फणी बनर्जी (जो उस्ताद फैय्याज़ ख़ान के शिष्य भी थे) जैसे योग्य संगीत गुरुओं के साथ पंकज मलिक जैसी महान संगीतकार हस्ती की प्रेरणा ही थी जिससे हेमंत कुमार, हेमंत कुमार बने.

राजा दुबे

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