हम-आप जब भी किसी सफर पर निकलते हैं तो एकाधिक बार ऐसा होता है कि सड़क पर इस प्रकार का बैनर नज़र आता है कि - "सावधान ! आगे रास्ता बंद हैं " और तब हममें से अधिकांश मन मसोस कर ठिठकते हैं और या तो वापस लौट आते हैं या फिर दायें-बायें कच्चे रास्ते पर उतर जाते हैं .भारतीय क्रिकेट जगत के बेहद हुनरमंद लैग स्पिनर राजिंदर गोयल के क्रिकेट करियर में भी ऐसा ही हुआ. अपने अच्छे ही नहीं उत्कृष्ट प्रदर्शन के बूते ही वो क्रिकेट के करियर में नई ऊँचाइयों को छूने की क्षमता रखते थे मगर जब वे परिदृश्य में थे तब भारतीय क्रिकेट टीम में बतौर लेग स्पिनर बिशनसिंह बेदी अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के बूते शिखर पर थे. वर्ष 1966 से वर्ष 1979 तक तेरह साल लम्बे करियर में उन्होंने कई लैग स्पिनर को भारतीय क्रिकेट टीम में प्रवेश को बाधित किया और राजिंदर गोयल भी उनमें से एक थे.टेस्ट क्रिकेट के लिये रास्ता बंद होने पर राजिंदर ने अपना दो पहिया वाहन को (यहाँ यह बताना जरुरी है कि राजिंदर हमेशा स्कूटर ही चलाते थे) रणजी मैचेस के कच्चे रास्ते पर उतार दिया अपने समय की सुप्रसिद्ध साप्ताहिक पत्रिका-धर्मयुग के खेल पृष्ठ पर खेल समीक्षक अरविंद लवकरे ने उनकी इस त्रासदी पर एक इन्टरव्यू मे़ बड़ी सटीक टिप्पणी की थी कि-"राजिंदर को अवसर नहीं मिला यह कहने के स्थान पर यह कहना बेहतर होगा कि टेस्ट टीम में उनके चयन की तो गुँजाइश ही नहीं थी ".
एक शहर रोहतक के मोह में फँसा क्रिकेटर
हरियाणा के नरवाना कस्बे में 20 सितम्बर 1942 को
जन्मे राजिंदर गोयल का पालन-पोषण रोहतक में हुआ. राजिंदर गोयल के पिता भारतीय रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर थे. वर्ष 1957 में उन्हें क्रिकेट में उस वक्त सफलता मिली जब ऑल इंडिया स्कूल टूर्नामेंट के फायनल मुकाबले में उत्तरी क्षेत्र की ओर से खेलते हुए उन्होंने चार विकेट लेकर पश्चिमी क्षेत्र को हराया यहीं से वे क्रिकेट प्रेमियों की नजर में आ गये. उन्हें प्रतियोगिता में बेहतरीन गेंदबाज का खिताब दिया गया। वे अपनी सफलता का श्रेय जिंदगी भर अपने कोच कृष्ण दयाल को देते रहे। उन्होंने दक्षिणी पंजाब टीम के साथ खेलकर अपने कैरियर की शुरुआत की और वर्ष 1963 में वे पंजाब से दिल्ली लौटे. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद क्रिकेट में अपनी दक्षता के बूते स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में रोहतक में ही नौकरी मिल गई और उन्हें रोहतक से इतना मोह था कि वे सेवानिवृत्ति तक पदोन्नति के सभी अवसरों को छोड़कर रोहतक में ही रहे.
रणजी ट्रॉफी मैचों में छ: सौ से अधिक विकेट
राजिंदर ने पटियाला, दक्षिण पंजाब , दिल्ली और हरियाणा टीम की ओर से मैच खेले. अपने चौबीस साल के क्रिकेट करियर में उन्होंने 157 प्रथम श्रेणी के मैच खेले जिसमें उन्होंने 750 विकेट लिये और 123 रणजी ट्रॉफी मैच में उन्होंने 640 विकेट लिये जो एक कीर्तिमान है. पचपन रन देकर आठ विकेट लेना उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है. राजिंदर गोयल को क्रिकेट के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिये - "कर्नल सी.के.नायडू लाईफ टाइम अवार्ड " भी दिया
जा चुका है.अपनी बेहतरीन फिरकी गेंदबाजी के कारण उन्होने अपने समय के सभी दिग्गज बल्लेबाज को प्रभावित किया. लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर के अनुसार वे गोयल की घूमती गेंद से डरते थे. हरियाणा की ओर से खेलने वाले राजिंदर अपनी ही टीम के धाकड़ बल्लेबाज अशोक मल्होत्रा को जब नेट प्रैक्टिस करवाते थे तो कहते थे कि अशोक तुम तो मेरी बॉल को छू भी नहीं पाओगे.
यूँ जिसका टेस्ट मैच में खेलना
वर्ष 1974-75 में जब वेस्ट इंडीज की क्रिकेट टीम भारतीय दौरे पर आई थी तब बेंगलूरु में खेले जाने वाले टेस्ट मैच से बिशनसिंह बेदी को एक इन्टरव्यू में आपत्तिजनक टिप्पणी के कारण अनुशासनात्मक कार्रवाई के तहत टीम से हटा दिया गया था। उनकी जगह राजिंदर का टीम में चुनाव किया गया. ऐसे में उनका टेस्ट टीम में पदार्पण पक्का माना जा रहा था मगर अफसोस टीम प्रबंधन ने आखिरी क्षण में फैसला बदलते हुए गोयल की जगह दो ऑफ स्पिनरों प्रसन्ना और वेंकटराघवन को टीम में खिलाने का फैसला कर लिया और वे टेस्ट खिलाड़ी बनते-बनते रह गये.राजिंदर गोयल को टेस्ट टीम का हिस्सा नहीं बन पाने का कभी कोई मलाल नहीं रहा। वे इस धारणा से कतई इत्तेफाक नहीं रखते कि बेदी की वजह से वे टेस्ट मैच नहीं खेल पाए। वे हमेशा कहते रहे बिशन सिंह बेदी बहुत बड़े खिलाड़ी थे और अपनी इसी बेहतरी की वजह से वे टेस्ट मैच खेल पाए.एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, 'मैं गलत वक्त में पैदा हुए शायद इसलिए टेस्ट मैच नहीं खेल पाया. राजिंदर गोयल का अवसान एक बेहतर खिलाड़ी और उससे भी कहीं आगे एक बेहतर इंसान का अवसान है.
राजा दुबे
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