Saturday, August 8, 2020

गाँधीजी के नेतृत्व में आज़ादी के लिये निर्णायक साबित हुआ -भारत छोड़ो आन्दोलन

 


भारत की आज़ादी के लिये सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से भारत छोड़ो आन्दोलन तक जो संघर्ष हुआ उसका लम्बा इतिहास है और इस संघर्ष गाथा में कई मुकाम ऐसे आये जब लगा कि बस अब देश सल्तनत -ए-बरतानिया के औपनिवेशिक साम्राज्य से आज़ाद होने को ही है. इस लम्बे और शहादत की गौरव गाथाओं से भरे स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के नेतृत्व में लड़ा गया -"भारत छोड़ो
आन्दोलन " आज़ादी के लिये सबसे निर्णायक और अंतिम (अल्टीमेट) लड़ाई थी . द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 08 अगस्त 1942 को आरम्भ किया गया था -भारत छोड़ो आन्दोलन .इस आन्दोलन का लक्ष्य था भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करना . यह आंदोलन महात्मा गाँधी द्वारा अखिलभारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई अधिवेशन में शुरू किया गया था.भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विश्वविख्यात काकोरी काण्ड के ठीक सत्रह साल बाद 09 अगस्त 1942 को गाँधीजी के आह्वान पर समूचे देश में एक साथ यह भारत छोड़ो आंदोलन आरम्भ हुआ था. भारत को तुरन्त आजाद करने के लिये अंग्रेजी शासन के विरुद्ध यह एक बड़ा सविनय अवज्ञा आन्दोलन था.

भारत छोड़ो आन्दोलन की पृष्ठभूमि जिससे यह आन्दोलन अपरिहार्य हो गया

क्रिप्स प्रस्तावों को भारतीयों द्वारा नकारे जाने और क्रिप्स मिशन के वापस लौटने के बाद कांग्रेस कार्य समिति ने एक प्रस्ताव पारित कर अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने के लिये कह दिया था .द्वितीय विश्व युद्ध की आड़ लेकर सरकार ने अपने आपको सख्त-से-सख्त कानूनों से सुरक्षित कर लिया था और शांतिपूर्ण गतिविधियों को भी प्रतिबंधित कर दिया था.स्थितियाँ अत्यंत विकट हो चुकी थीं और भारत के राष्ट्रीय नेतृत्व को भी यह पता था कि उस समय विद्रोह का नतीजा जनता के कठोर दमन के रूप में आएगा, परंतु फिर भी यह संघर्ष छेड़ा गया.इस संघर्ष के अपरिहार्य हो जाने के कारण थे - संवैधानिक गतिरोधों को हल करने में क्रिप्स मिशन असफल हो गया था और यह स्पष्ट हो गया था कि ब्रिटिश सरकार भारतीयों के साथ किसी सम्मानजनक समझौते के लिये तैयार नहीं है  . युद्ध के कारण रोज़मर्रा की आवश्यक वस्तुओं के अभाव के चलते मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि के कारण सरकार के प्रति जनता में तीव्र आक्रोश था. जापानी आक्रमण के भय से ब्रिटिश सरकार ने उड़ीसा, बंगाल व असम में दमनकारी भू-नीति का इस्तेमाल किया.दक्षिण-पूर्वी एशिया में ब्रिटेन की हार के कारण असंतोष व्यक्त करने की भारतीयों की इच्छाशक्ति जागृत हो गई .ब्रिटिश सत्ता में उनकी आस्था समाप्त हो गई और सत्ता के स्थायित्व के प्रति उनके मन में संदेह पैदा हो गया फलस्वरूप जनता डाकघरों और बैंकों से अपने रुपए निकालने लगी.बर्मा और मलाया को खाली करवाने के तरीकों से भी जनता में काफी क्षोभ व्याप्त था.भारतीयों को लगने लगा था कि अगर जापान ने आक्रमण किया तो अंग्रेज़ यहाँ भी इसी प्रकार विश्वासघात करेंगे.लोगों में निराशा फैल रही थी और यह आशंका पैदा हो गई थी कि यदि जापानी आक्रमण हुआ तो जनता हताशा के चलते प्रतिरोध ही न करे, अतः यह समय राष्ट्रीय नेताओं को एक बड़ा संघर्ष शुरू करने के लिये उचित लगा.भारत छोड़ो आंदोलन भारत के लिये एक युगांतरकारी आंदोलन था, क्योंकि इसने भारत की भावी राजनीति की आधारशिला रखी.“करो या मरो” नारे के साथ ग्वालिया टैंक मैदान से गाँधीजी ने अपने ऐतिहासिक भाषण में कहा कि- “जब भी सत्ता मिलेगी, भारत के लोगों को मिलेगी और तब जनता ही तय करेगी कि इसे किसके हाथों में सौंपा जाना है।” सही मायनों में भारत छोड़ो आंदोलन में ही आज़ादी की लड़ाई का नेतृत्व “हम भारत के लोगों” को प्राप्त हुआ ." भारत छोडो " का नारा युसुफ मेहर अली ने दिया था  युसूफ मेहरली भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के अग्रणी नेताओं में से एक थे.

 ब्रिटिश शासन के खिलाफ गाँधीजी का यह तीसरा सबसे बड़ा आन्दोलन था

क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ अपना तीसरा बड़ा आंदोलन छेड़ने का फ़ैसला लिया था.अखिलभारतीय काँग्रेस कमेटी के बम्बई अधिवेशन में इसे 08 अगस्त 1942 की शाम को बम्बई में -"अंग्रेजों भारत छोड़ो " का नाम दिया गया था. इस आन्दोलन की घोषणा के बाद ही गाँधीजी को फ़ौरन गिरफ़्तार कर लिया गया था.लेकिन देश भर के युवा कार्यकर्ता हड़तालों और तोड़फ़ोड़ की कार्रवाइयों के जरिए आंदोलन चलाते रहे.काँग्रेस में जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी सदस्य भूमिगत प्रतिरोधी गतिविधियों में सबसे ज्यादा सक्रिय थे .पश्चिम में सतारा और पूर्व में मेदिनीपुर जैसे कई जिलों में स्वतंत्र सरकार की स्थापना भी  कर दी गई थी.अंग्रेजों ने आंदोलन के प्रति काफ़ी सख्त रवैया अपनाया फ़िर भी इस विद्रोह को दबाने में सरकार को साल भर से ज्यादा समय लगा.यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का आखिरी  बड़ा आंदोलन था, जिसमें सभी भारतवासियों ने एक साथ बड़े स्तर पर भाग लिया था.कई जगह समानांतर सरकारें भी बनाई गईं, स्वतंत्रता सेनानी भूमिगत होकर भी लड़े.यह आंदोलन ऐसे समय में प्रारंभ किया गया जब द्वितीय विश्वयुद्ध
जारी था और औपनिवेशिक देशों के नागरिक स्वतंत्रता के प्रति जागरूक हो रहे थे और कई देशों में साम्राज्‍यवाद एवं उपनिवेशवाद के खिलाफ आंदोलन तेज़ होते जा रहे थे. ऐसे समय में भारत में ऐसे एक आन्दोलन ने देश की आज़ादी का मार्ग प्रशस्त किया.

इस आन्दोलन को " अगस्त क्राँति " के नाम से भी जाना जाता है

भारत छोड़ो आंदोलन को -"अगस्त क्रांति " के नाम से भी जाना जाता है.विश्व युद्ध में इंग्लैण्ड को बुरी तरह उलझता देख जैसे ही नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज को "दिल्ली चलो" का नारा दिया, 
गाँधीजी ने मौके की नजाकत को भाँपते हुए 08  अगस्त 1942  की रात में ही बम्बई से अँग्रेजों को "भारत छोड़ो" व भारतीयों को "करो या मरो" का आदेश जारी किया और सरकारी सुरक्षा में यरवदा पुणे स्थित आगा खान पैलेस में चले गये. इसी दिन अर्थात  09 अगस्त 1942 को लालबहादुर शास्त्री सरीखे एक छोटे से व्यक्ति ने इसे प्रचण्ड रूप दे दिया और 19 अगस्त, 1942  को शास्त्रीजी गिरफ्तार हो गये. इस आऩ्दोलन के सत्रह साल पहले 09 अगस्त 1925 को ब्रिटिश सरकार का तख्ता पलटने के उद्देश्य से रामप्रसाद'बिस्मिल' के नेतृत्व में हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ के दस जुझारू कार्यकर्ताओं ने काकोरी काण्ड किया था जिसकी यादगार ताजा रखने के लिये पूरे देश में प्रतिवर्ष 09 अगस्त को "काकोरी काण्ड स्मृति-दिवस" मनाने की परम्परा भगत सिंह ने प्रारम्भ कर दी थी और इस दिन बहुत बड़ी संख्या में नौजवान एकत्र होते थे गाँधीजी ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत 09 अगस्त 1942 का दिन चुना था.

आन्दोलन के दौरान बड़ी संख्या में लोगों ने प्राणोत्सर्ग भी किया था

भारत छोड़ो आंदोलन , विश्व इतिहास में सबसे सशक्त जन आंदोलन के रुप में जाना जाता है जिसमें लाखों आम हिंदुस्तानी शामिल थे .इस आंदोलन ने युवाओं को बड़ी संख्या में अपनी ओर आकर्षित किया .यवा  अपने कॉलेज छोड़कर जेल का रास्ता अपनाने लगे. इस आन्दोलन से तत्कालीन ब्रिटिश सरकार घबरा गई और 09 अगस्त 1942 को दिन निकलने से पहले ही काँग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्य गिरफ्तार हो चुके थे और काँग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया गया था.गाँधीजी के साथ भारत कोकिला सरोजिनी नायडू को यरवदा पुणे के आगा खान पैलेस में, डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद को पटना जेल व अन्य सभी सदस्यों को अहमदनगर के किले में नजरबन्द किया गया था .सरकारी आँकड़ों के अनुसार इस जनान्दोलन में 940 लोग मारे गये थे, 1630  घायल हुए थे और  18,000 डी.आई.आर. में नजरबन्द हुए तथा 60,229 लोग 
गिरफ्तार हुए थे. इस आन्दोलन को कुचलने के ये आँकड़े दिल्ली की सेण्ट्रल असेम्बली में ऑनरेबुल होम मेम्बर ने पेश किये थे.

आन्दोलन के लिये दिया था गाँधीजी ने  एक मंत्र

भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित होने के बाद बम्बई के  गवालिया टैंक मैदान में गाँधीजी जी ने कहा कि -“ एक छोटा सा मंत्र है जो मैं आपको देता हूँ.इसे आप अपने ह्रदय में अंकित कर लें और अपनी हर सांस में उसे अभिव्यक्त करें। यह मंत्र है-“करो या मरो”। अपने इस प्रयास में हम या तो स्वतंत्रता प्राप्त करेंगे या फिर जान दे देंगे .”इस तरह भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ‘भारत  छोड़ो’ एवं ‘करो या मरो’ भारतीयों का नारा बन गया . यह आंदोलन स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये किये गये प्रयासों के अंतिम चरण को इंगित करता है। इसने गाँव से लेकर शहर तक ब्रिटिश सरकार को चुनौती दी .इससे भारतीय जनता के अंदर आत्मविश्वास बढ़ा और समानांतर सरकारों के गठन से जनता काफी उत्साहित हुई . इसमें महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और जनता ने नेतृत्व अपने हाथ में लिया जो राष्ट्रीय आंदोलन के परिपक्व चरण को सूचित करता है . इस आंदोलन के दौरान पहली बार राजाओं को जनता की संप्रभुता स्वीकार करने को कहा गया . 


राजा दुबे 

No comments: