Tuesday, September 15, 2020

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की याद में देश मनाता है इंजीनियर्स डे- राजा दुबे

 


ईंट, पत्थर, लोहे और सीमेंट की सहायता से इमारत , पुल, बाँध और दीगर उपयोगी निर्माण करने वाला इंजीनियर, एक शिल्पकार के तुल्य  होता है जो एक तय प्रारुप के साथ अपनी मेधा और कल्पनाशीलता के साथ ऐसे रुपाकार  गढ़ता है जो सुदर्शन, टिकाऊ और अद्भुत होते हैं. ऐसे ही रुपाकार गढ़ने वाले इंजीनियर जब अपने विशिष्ट तकनीकी कौशल के साथ सामाजिक सरोकार  को भी शामिल कर लेते हैं तो वह महान बन जाते हैं. औपनिवेशिक पराधीनता के दौर में अपनी प्रतिभा से भारत के विकास में योगदान देने वाले भारत रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया एक ऐसे ही युगदृष्टा इंजीनियर थे . जिनके अवदान को याद करते हुए देश प्रतिवर्ष उनके जन्मदिन 15 सितम्बर को इंजीनियर्स डे (अभियन्ता दिवस ) के रुप में मनाता है.एम. विश्वेश्वरैया भारत के महान इंजिनियरों में से एक थे, जिन्होंने आधुनिक भारत की रचना की और भारत को नया रूप दिया. उनकी दृष्टि और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उनका समर्पण और उनका असााधारणअवदान ने उन्हे़ अतुल्यऔर अविस्मरणीय बना दिया. एक मेधावी इंजीनियर के साथ ही वे एकअध्येता, अन्वेषक और समय से आगे की सोचने वाले व्यक्ति थे और उनकी इसी अद्वितीय और अप्रतिम क्षमता  के कारण वर्ष 1955 में उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान - "भारत रत्न" से सम्मानित किया गया था. सच तो यह है कि उन्होंने इंजीनियरिंग को सामाजिक सरोकार से सम्बद्ध कर एक आदर्श गढ़ा.

कृतज्ञता ज्ञापन और योगदान के आकलन का दिन है - अभियन्ता दिवस

इंजीनियर डे (अभियन्ता दिवस) मनाने का सिलसिला भारत में 15 सितम्बर 1967 से आरम्भ हुआ था जब देश के महान इंजीनियर ,स्वप्नदृष्टा और इस पेशे को गौरव प्रदान करने वाले भारतरत्न मोक्षगुंडम  विश्वश्वेसरैया के जन्मदिन को हमने - इंजीनियर डे के
रुप में अंगीकार किया था. इस दिन समूचे देश मे राजकीयऔर निजी समारोह में इंजीनियर के अवदानों को याद किया जाता  है और उल्लेखनीय उपलब्धियां हांसिल करने वाले इंजीनियर को सम्मानित भी किया जाता है. इस वर्ष कोरोना संक्रमण के कारण संभवत:
सार्वजनिक सम्मान न हो मगर वर्चुअल मीट, वेबीनार और सोश्यल मीडिया पर तो इंजीनियर की अमूल्य सेवाओं के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन और उनके योगदान के आकलन किया ही जा सकता है.इसी दिन भारत की पहली महिला इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर तमिलनाडु की ए.ललिता और विश्व की पहली महिला इंजीनियर रोमानिया की एलिसा लियोनिडा जिमफैरिस्क्यू के अवदान को भी याद करते हैं. इंजीनियरिंग व्यवसाय से जुड़े विभिन्न मुद्दों यथा - भारतीय इजीनियरिंग की दक्षता को विश्वसतरीय बनाने, कम  संसाधन में अधिक उपलब्धि वाली मितव्ययी इंजीनियरिंग को बढ़ावा देने.विकासशील भारत में इंजीनियर की भूमिका को परिभाषित करने और बदलते समय की चुनौतियों के अनुरुप इंजीनियर के पेशे में बदलाव लाने पर भी  व्यापक विचार विमर्श होता है.


इंजीनियरिंग शिक्षण की गुणवत्ता और क्षमता में बढ़ोत्तरी पर विचार-विमर्श जरुरी
इंजीनियरिंग विषयों के शिक्षण  के गिरते स्तर और एक पेशेवर इकाई के रुप कार्यरत इंजीनियर की क्षमता में बढ़ोत्तरी पर भी इस एक दिन गहन मंथन होना चाहिए. इंजीनियरिंग विषयों के शिक्षण  के गिरते स्तर से चिंतित होकर ही देश की अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद  (एआईसीटीई)  की एक समिति ने कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन के सुझाव सहित एक रिपोर्ट भारत सरकार के मानव संसाधन विभाग को सौंपी थी.बी.आर.मोहन रेड्डी की अध्यक्षता वाली इस समिति ने -" तकनीकी शिक्षा के लिये लघु एवम् मध्यमस्तरीय परिप्रेक्ष्य " को ध्यान में रखकर जो रिपोर्ट सौंपी थी उसमें नये इंजीनियरिंग कॉलेज न खोलने, प्रचलित इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में और सीट न बढ़ाने और नियोजक की भूमिका निभाने वाले उद्योगों के साथ अकादमिक सम्पर्क बढ़ाने का व्यवस्थित पारिस्थितिक तंत्र ( इकोसिस्टम) तैयार करने के महत्वपूर्ण सुझाव दिये थे .रिपोर्ट के अनुसार मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, सिविल और इलेक्ट्रानिक्स जैसे पारंपरिक संकायों में सीट नहीं भर पा रही हैं जबकि कम्प्यूटर विज्ञान, मेकाट्रोनिक्स एवं एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में स्थिति इससे काफी बेहतर है . इससे स्पष्ट होता है कि उभरती हुई प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में मांग है . ऐसे ही सुझावों को गुण दोष के आधार पर स्वीकार कर, परिवर्तन के निर्णय जरुरी है जिससे इंजीनियरिंग विषयों के शिक्षण का स्तर बढ़े.


एम. विश्वेश्वरैया ने अपनी मेधा के बूते विकास का कल्याणधर्मी स्वरुप तय किया 
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मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया नेअपनी मेधा के बूते ही देश में अधोसंरचना विकास का कल्याणधर्मी स्वरुप तय किया था.विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितम्बर 1860 को मैसूर रियासत में हुआ था. चिकबल्लापुर से इन्होंने प्रायमरी स्कूल की पढाई पूरी की, और आगे की पढाई के लिए वे बैंगलुरू चले गए.   वर्ष 1881 में विश्वेश्वरैया ने मद्रास यूनिवर्सिटी के सेंट्रल कॉलेज, बैंगलुरू से बीए की परीक्षा पास की. इसके बाद मैसूर सरकार से उन्हें सहायता मिली और उन्होंने पूना के साइंस कॉलेज में इंजीनियरिंग के लिए दाखिला लिया. वर्ष  1883 में एल.सी.ई.और एफ.सी.ई. की परीक्षा में उन्होंने सर्वोच्च स्थान पाया था.सिन्धु नदी के पानी के सुक्खू गाँव तक ब्लॉक सिस्टम से प्रदाय ,बाँध में पानी का प्रवाह रोकने के लिये इस्पात के दरवाजों का उपयोग और मैसूर में कृष्णराज सागर बाँध के निर्माण सहित अनेक प्रतिष्ठापूर्ण निर्माणों में आपका अवदान रहा. बाढ़ के दबाव को झेल सकने वाले खड़गवासला बाँध का निर्माण, हैदराबाद सिटी बनाने और उस शहर के लिये बाढ़ नियंत्रण पद्धति विकसित करने और  विशाखापट्टनम में समुद्र के कारण बंदरगाह के कटाव को रोकने जैसी कई उपलब्धियां उनके नाम हैं   . विश्वेश्वरैया को आधुनिक मैसूर राज्य के पिता की संज्ञा भी दी जाती है. मैसूर में विभिन्न उद्योगों, पोलिटेक्निक संस्थानों ,विश्वविद्यालयों, चैम्बर ऑफ कामर्स,  र्सैंचुरी क्लब और स्टेट बैंक ऑफ मैसूर जैसे कई संस्थानों की स्थापना का श्रेय भी आपको है.

प्रतिष्ठित पेशे की गरिमा और उसके हत्व को परिभाषित करता है यह दिन


इंजीनियरिंग को विश्व के लगभग सभी देशों में एक गरिमापूर्ण पेशे के रुप में जाना जाता है. भारत में तो डॉक्टर, इंजीनियर और वकील बनने को गर्व के साथ उल्लेखित किया जाता था. वस्तुत: एक इंजीनियर अपने पेशे के कर्तव्य को निभाते हुए सामाजिक सरोकारों के अपने कर्तव्य को भी पूरा करता है अत: इसे एक अपेक्षाकृत उत्कृष्ट पेशा माना जाता है. आज भी देश में दूसरे पेशों की अपेक्षा इससे जुड़ने वाले युवाओं की संख्या काफी अधिक है. एक अध्ययन के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष लगभग बीस लाख युवा इंजीनियर बन जाते हैं. यह आँकड़े इंजीनियरिंग की सभी शाखाओं सिविल, मैकेनिकल, इलेक्ट्रॉनिक, केमीकल और कम्प्यूटर साइंस को मिलाकर हैं. 
इंजीनियरिंग की अपेक्षाकृत नई शाखा सूचना प्रौद्योगिकी में तो भारतीय युवाओं  की दिलचस्पी चरम पर है और भारत विश्व के उन गिने-चुने अग्रणी देशों में से है जहाँ बड़ी संख्या में आई. टी. प्रोफेशनल हैं.हमारे देश में इंजीनियर डे को इस प्रतिष्ठित पेशे के महत्व को परिभाषित करने वाले दिन के रुप में देखा जाता है.इस इंजीनियर दिवस पर तकनीकी शिक्षा के विषय विशेषज्ञ और शिक्षाविद् इस मुद्दे पर मंथन भी कर सकते हैं कि इजीनियरिंग की स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने वाले युवकों की संख्या की तुलना में रोजगार के घटते अवसरों का तालमेल कैसे बैठाया जाये? इस समस्या का समाधान इस पेशे की गरिमा और महत्व को बनाये रखने के लिये जरुरी है.


अब सामाजिक सरोकारों से जुड़ी नई भूमिका विकसित करनी होगी 

एक पेशेवर इंजीनियर को केवल धनार्जन के लक्ष्य से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से जुड़ने की पारम्परिक भूमिका को लेकर अब पुनर्विचार करना होगा.एक युवा और संभावनाओं से परिपूर्ण इंजीनियर को अब सामाजिक सरोकारों से जुड़ी नई भूमिका विकसित करनी होगी. इंजीनियर का पेशा वास्तव में एक तकनीकी पेशा है जिसमें  किसी भी इंजीनियर द्वारा विभिन्न फिजिकल और केमिकल विज्ञान कीअवधारणाओं और सिद्धान्तों कोअपनी ब्रांच के मुताबिक विभिन्न प्रोजेक्ट या प्रोडक्ट के रुपांकन और उत्पादन में प्रयुक्त किया जाता है.इस प्रतिस्पर्धा के युग में एक सफल इंजीनियर बनने की लिए आपको अपने काम को शत-प्रतिशत अंजाम देना होगा तभी एक इंजीनियर अपने औचित्य और उपादेयता को प्रमाणित कर पायेगा.मगर वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण जो बड़े आर्थिक बदलाव आये हैं उसके बाद
सभी ओद्यौगिक इकाइयों की प्राथमिकता बदली है और देश में -" आर्थिक आत्मनिर्भरता " के विचार ने ओद्यौगिक उत्पादन के क्षेत्र में देशी मशीनों, देशी प्रोद्यौगिकी और घरेलू कच्चे माल के साथ उत्पादन  का जो संकल्प लिया है उसमें उद्योगपति के साथ ही काम करने वाले कामगारों और इंजीनियर जैसे तकनीशियन  की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो गई है और उन्हें अनुसंधान के क्षेत्र में भी सक्रिय होना पड़ेगा. आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने में इंजीनियर की भूमिका का नया भाष्य देश के सामने रखना होगा.


राजा दुबे


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