Tuesday, October 6, 2020

देश के सर्वांगीण विकास का प्रभावी माध्यम होती है डाक सेवा - राजा दुबे

सम्पर्क, संप्रेषण और सूचना के प्रवाह का सशक्त माध्यम होती किसी भी देश की डाक सेवा. एक स्वायत्त और संप्रभुतासम्पन्न शासन  द्वारा संधारित डाक-व्यवस्था उस देश के सर्वांगीण विकास का एक प्रभावी माध्यम होती है. विभिन्न देशों में अलग- अलग स्वरुप में विद्यमान डाक-संगठन अपनी अहम् भूमिका का बखूबी निर्वाह कर रहें हैं. इसी भिन्न-भिन्न डाक-संगठनों के महती अवदान को मान्यता देने और उनकी सेवाओं की सराहना के लिये विश्व के अधिकांश देशों में - " विश्व डाक दिवस " मनाया जाता है. विश्व डाक दिवस, स्विटज़रलैंड के बर्न में वर्ष 1874 ईस्वी में यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (यूपीयू) की स्थापना की याद में मनाया जाता है. भारत 01 जुलाई, 1876  को यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बना था. इस सदस्यता को लेने वाला भारत एशिया का पहला देश था. वर्ष 1874 में  हेनरिक वॉन स्टेपहान जो कि उत्तर जर्मन परिसंघ के एक वरिष्ठ डाक अधिकारी थे ने एक अंतरराष्ट्रीय डाक यूनियन के लिए एक योजना तैयार की. उनके सुझाव के आधार पर, स्विस सरकार ने 15 सितंबर 1874 को बर्न में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें बाईस राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था .बर्न की संधि, 1874 में हस्ताक्षरित की गयी. इस संधि ने पत्रों के आदान प्रदान के लिए एक एकल पोस्टल क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय डाक सेवाओं और नियमों को व्यवस्थित करने में सफलता प्राप्त की.उसी वर्ष 9 अक्तूबर को विश्व डाक दिवस की शुरुआत की गई वर्ष 1947 में, यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन , संयुक्त राष्ट्र की एक विशिष्ट एजेंसी बन गई. 


डाक सेेवाओं के महत्व और उपयोगिता पर केन्द्रित होते हैं -"डाक दिवस" के आयोजन

विश्व डाक दिवस का मूल उद्देश्य लोगों के बीच पोस्टल सेवा के बारे में प्रचार प्रसार करना है और उसके महत्व को प्रतिपादित करना है. साथ ही लोगों के जीवन और राष्ट्र के सामाजिक और आर्थिक विकास में इसके योगदान के बारे में बताना है. इस दिवस पर डाक सेवा में नवाचारों की भी चर्चा होती है.मानव कल्याण के लिये डाक सेवाओं की उपादेयता पर भी इस दिन चर्चा होती है. प्रोद्यौगिकी में बदलाव के बाद
डाक विभाग मौजूदा संरचना मे परिवर्तन कर अपनी उपयोगिता कैसे प्रमाणित कर सकती है इस पर भी चर्चा की जाती है. इस साल कोरोना संक्रमण के कारण सेमीनार के स्थान पर वेबीनार के आयोजन होंगे और  वर्चुअल मोड पर ही यह दिवस मनेगा. इस दिवस के आयोजन में विविध देशों से प्रतिनिधि भाग लेते हैं. इस आयोजन में अन्तराष्ट्रीय स्तर पर लोगों को जागरूक करने और इसकी महत्ता के बारे में बताने के लिए विविध कार्यक्रमों और गतिविधियों का आयोजन किया जाता है. प्रति वर्ष 150 से अधिक राष्ट्रों द्वारा विभिन्न तरीकों से विश्व डाक दिवस मनाया जाता है. यद्यपि कई देशों में इस दिन को एक छुट्टी के रुप में मनाया जाता है. कुछ देशों में इस दिन नए डाक उत्पादों और सेवाओं को प्रस्तुत किया जाता है. यहां तक ​​कि इस दिवस के अवसर पर पोस्ट विभाग में कार्यरत कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों को उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिये पुरस्कृत भी किया जाता है. 

भारत में दो सौ चौपन साल पहले कोलकाता में खुला था पहला डाकघर

भारतीय डाक विभाग की स्थापना वर्ष 1766 में हुई थी और तत्कालीन वायसराय वारेन हेस्टिंग्स ने वर्ष 1774 में कोलकाता में दो सौ चौपन साल पहले प्रथम डाकघर स्थापित किया था.आज देश में डाक विभाग डेढ़ लाख से अधिक पोस्ट ऑफिस का संचालन कर रहा है.जिनमें से 89.87% पोस्ट ऑफिस ग्रामीण क्षेत्रों में है तथा औसतन प्रति 21.23 वर्ग किलोमीटर में यह लगभग 8,086 जनसंख्या को अपनी सेवाएं प्रदान कर रहें हैं.भारत में एक विभाग के रुप में डाक विभागीय की स्थापना 01 अक्तूबर, 1854 को हुई थी.भारतीय डाक विभाग हर साल  09 से 14 अक्टूबर के बीच विश्व डाक सप्ताह मनाता है   देश में त्वरित डाक सेवा की अत्याधुनिक प्रणाली स्पीड पोस्ट का आरंभ वर्ष 1986 में हुआ था जबकि देश में पैसों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक नाममात्र के कमीशन पर पहुँचाने वाली विश्वसनीय मनीऑर्डर सेवा का आरम्भ वर्ष 1980 में हुआ था. इसीप्रकार भारतीय सीमा के बाहर दक्षिण गंगोत्री, अंटार्किटा में वर्ष  1983 पहला डाकघर बना था.संप्रेषण के अन्य माध्यमों के आने से भले ही डाक की प्रासंगिकता कम हो गई हो, लेकिन कुछ मायने में अभी भी इसकी प्रासंगिकता बरकरार है. दुनियाभर में पोस्ट ऑफिस से संबंधित इन आंकड़ों से हम इसे और अधिक स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं. डाक विभाग से अभी भी 82 फीसदी वैश्विक आबादी को होम डिलीवरी का फायदा मिलता हैऔर  एक डाक कर्मचारी 1,258 औसत आबादी को सेवा मुहैया कराता हैै , जो इस सेवा की व्यापकता को दर्शाता है.

कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन में भारतीय डाक ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका

"विश्व डाक दिवस" पर यदि हम भारतीय डाक विभाग की भूमिका का पुनर्स्मरण करें तो हम पायेंगे कि इस विभाग जिसे इन दिनों हम "भारतीय डाक" यानी इंडिया पोस्ट के नाम से जानते हैं, वर्ष 2020 में कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन के कठिन दिनों में आमजन की सहायता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. ई-मेल, व्हाट्सऐप और अन्य ऑनलाइन माध्यमों के प्रचलन के कारण एक समय सम्पर्क का मुख्य आधार रहे डाकघरों को जहाँ पलक झपकते अप्रासंगिक बना दिया था वहीं कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन के समय यही-" भारतीय डाक " की सेवाएं देश में विशेष रुप से ग्रामीण और दुर्गम इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए बड़ी मददगार साबित हुईं है ,बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि कोरोना महामारी ने इन डाकघरों को एक बार फिर प्रासंगिक बना दिया है. डाकियों ने इस दौरान देश भर में एक हजार करोड़ से ज्यादा नकद की होम डिलीवरी की है. यह रकम लॉकडाउन के दौरान डाकघर बचत खातों में हुए छांछठ हजार करोड़ रुपयों के नियमित लेन-देन के अतिरिक्त थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी उपलब्धि के कारण बीते महीने रेडियो पर अपने कार्यक्रम -"मन की बात" में लॉकडाउन के दौरान नकदी, आवश्यक वस्तुओं और चिकित्सा उपकरणों की सप्लाई बहाल रखने में डाक विभाग की भूमिका की खुलकर सहाहना की थी, जो विभाग के सहायता कार्य की अहम् ताईद थी.

डाक विभाग ने त्वरित सहायता की कारगर और पुरअसर जुगत की

कोरोना की वजह से जारी देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान बैंक तो खुले थे लेकिन कूरियर सेवाओं और परिवहन के तमाम साधनों के बंद होने की वजह से आम लोगों को खासकर दूर-दराज के इलाके के लोगों के लिए पैसे निकालने के लिए बैंकों तक पहुँचना या अपने प्रियजन तक पैसे या जरूरी सामान भेजना असंभव हो गया था. ऐसे में केंद्रीय संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इंडिया पोस्ट से संकट के इस दौर में कुछ नई तरकीब निकालने की अपील की और विभाग ने त्वरित सहायता की कारगर और पुरअसर जुगत की. विभाग ने अपने वाहनों के जरिए एक नेशनल रोड ट्रांसपोर्ट नेटवर्क विकसित किया.विभाग ने पाँच सौ किलोमीटर के दायरे में बाईस लंबे रूट तय किए गए जो देश के पिचहत्तर शहरों को जोड़ते थे. इसके जरिए जरूरी सामानों और नकदी के अलावा चिकित्सा उपकरणों की भी होम डिलीवरी की गई. खासकर नकदी की होम डिलीवरी ने कई पेंशनभोगी लोगों को भारी राहत पहुंचाई है.बयासी  वर्षीय पेंशनभोगी सुब्रत बागची कहते हैं -" लॉकडाउन के ऐलान के बाद मेरी सबसे बड़ी चिंता यह थी कि मैं अपने पेंशन की रकम नहीं निकाल सकूंगा ".लेकिन पोस्टमास्टर को एक फोन करते ही अगले दिन घर पर पेंशन की रकम मिल गई. पेंशन ही मेरी रोजी-रोटी का जरिया है और संकट के इस दौर में डाकघर ने जो बेहद अहम् भूमिका निभाई है वो अतुलनीय है.

बदलती तकनीक में आज भी समय से हमकदम है डाक सेवा

बदलते हुए तकनीकी दौर में दुनियाभर की डाक व्यवस्थाओं ने मौजूदा सेवाओं में सुधार करते हुए खुद को नई तकनीकी सेवाओं के साथ जोड़ा है और डाक, पार्सल, पत्रों को गंतव्य तक पहुंचाने के लिए एक्सप्रेस सेवाएं शुरू की हैं. डाकघरों द्वारा मुहैया कराई जाने वाली वित्तीय सेवाओं को भी आधुनिक तकनीक से जोड़ा गया है. नई तकनीक आधारित सेवाओं की शुरुआत तकरीबन बीस वर्ष पहले की गई और उसके बाद से इन सेवाओं का और तकनीकी विकास किया गया. साथ ही इस दौरान ऑनलाइन पोस्टल लेन-देन पर भी लोगों का भरोसा बढ़ा है. यूपीयू के एक अध्ययन में यह पाया गया है कि दुनियाभर में इस समय पचपन से भी ज्यादा विभिन्न प्रकार की पोस्टल ई-सेवाएं उपलब्ध हैं .भारतीय डाक विभाग ने सतहत्तर फीसदी ऑनलाइन सेवाएं दे रखी हैं, जबकि एक सौ सतहत्तर  पोस्ट वित्तीय सेवाएं मुहैया करवाता है और पाँच दिन के मानक समय के अंदर  83.62  फीसदी अंतरराष्ट्रीय डाक सामग्री बांटी जाती है.इन तथ्यों से यह स्पष्ट है कि बदलती तकनीक में आज़ भी समय से हमकदम है डाक सेवा. विश्व में विभिन्न देशों की तुलना में भी भारतीय डाक सेवा अधिक सक्षम और प्रभावी है.

राजा दुबे

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