Sunday, November 1, 2020

सवाल अहम है : उपचुनाव पर भारी खर्च के लिये कोई तो जिम्मेदार हो !


उपचुनाव पर भारी खर्च के लिये कोई तो जिम्मेदार हो  ! 


बिहार विधानसभा के आम चुनाव के साथ ही देश के
विभिन्न राज्यों में विधायकों के दलबदल अथवा विधायक के निधन के कारण रिक्त छप्पन स्थानों के लिये भी 03 नवम्बर, मंगलवार को उपचुनाव होंगे. इन छप्पन स्थानों में से आधे से भी अधिक अट्ठाईस विधानसभा क्षेत्रों में अकेले मध्यप्रदेश में चुनाव होंगे. मध्यप्रदेश के इन अट्ठाईस विधानसभा क्षेत्रों में से मात्र तीन विधानसभा क्षेत्रों में मौजूदा विधायक के असामयिक निधन के कारण उपचुनाव हो रहें हैं शेष पच्चीस विधानसभा क्षेत्रों में विधायकों द्रारा दल बदलने और उनके त्यागपत्र के कारण उपचुनाव हो रहे हैं, इनमें से भी बाईस विधायक ने तो एकमुश्त कांग्रेस से त्यागपत्र देकर वरिष्ठ कांग्रेस नेता ज्य़ोतिर्रादित्य सिन्धिया के साथ पाला बदल भाजपा में गये थे.

मध्यप्रदेश की मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी श्रीमती वीरा
राणा के अनुसार कोरोना संक्रमण के कारण इस बार मध्यप्रदेश के इन अट्ठाईस विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव पर तीन गुना खर्च होगा.प्रत्येक मतदान केंद्र में से भीड़ से बचाव के लिये पाँच सौ मतदाता कम किए गये हैं. इनके लिए कुछ नये मतदान केंद्र बनेगें. विधानसभा उपचुनाव में केंद्र सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन की उन तमाम गाइडलाइन का पालन किया जाएगा जो संक्रमण से बचने के लिए जरूरी है. मतदाताओं के लिए सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क, सैनिटाइजर जैसे इंतजाम करने होंगे. इसके लिए हर एक विधानसभा सीट पर 2 करोड़ 73 लाख रुपए खर्च होने का अनुमान है.इस हिसाब से इन उपचुनाव पर 76 करोड़ 44 लाख रुपये खर्च होंगे , जबकि सामान्य स्थिति में इन अट्ठाईस विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव का खर्च 22 करोड़ 61 लाख ही आता.

इस सच्चाई के सतह पर आने के बाद अब यह सवाल अहम हो गया है कि इस थोपे गये खर्च की भरपाई कौन करे? ऐसे खर्च की भरपाई का कोई संवैधानिक प्रावधान अभी तो नहीं है मगर भविष्य के लिये जब बड़ी संख्या में विधायक दलबदल करें तो उनके दलबदल के कारण होने वाले उपचुनाव पर होने वाले खर्च को दलबदल करने वाले विधायकों अथवा उन्हें ऐसा करने को उकसाने वाले नेताओं से ही वसूल किया  जाना चाहिये.यह भी हो सकता है कि जब दलबदल के कारण किसी दल के सरकार गिर जाये तो जिस दल की सरकार बने उस पार्टी से यह खर्च वसूल किया जाये. अंतत: कोई तो इस खर्च का जिम्मेदार हो? इस बार तो इन उपचुनाव की प्रक्रिया आरम्भ हो गई है और उस पर स्थगन अव्यवहारिक होगा मगर एक बार जनहित याचिका के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय के संज्ञान में यह बात लाई जानी चाहिए. थोकबंद दलबदल के कारण इसप्रकार के उपचुनाव चाहे वो कर्नाटक में हो अथवा मध्यप्रदेश में उनके होने में भाजपा की भूमिका प्रमुख रही है अत: भाजपानीत गठबंधन की मौजूदा राजग गठबंधन की केन्द्र सरकार तो ऐसा कानून शायद ही बनाये. 

यह सवाल इसलिये भी जरुरी है क्योंकि ऐसे उपचुनाव के पर अंततः यह जो बड़ी धनराशि  खर्च होती है वो जनता के जेब से ही जाती  है, वो भी ईमानदार करदाता के जेब से. क्या कोई जनता पर पड़ने वाले इस गैरजरूरी खर्च के बोझ की प्रतिपूर्ति की विधिसम्मत व्यवस्था की पहल करेगा? 

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