Tuesday, December 1, 2020

एड्स से बचाव के लिये जरुरी है सुरक्षा उपायों के प्रति जागरूकता

 


दुनियाभर में एचआईवी - ह्यूमन इम्यूनोडेफिसियेंसी वायरस जिसे एड्स (एक्वायर्ड इम्यून डेफिसियेंसी सिन्ड्रोम) के नाम से जाना जाता है वह आधुनिक समय की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है। यूनीसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार अब तक विश्व में 36.9 मिलियन (तीन करोड़ इकसठ लाख) लोग एड्स के शिकार हो चुके हैं जबकि भारत सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार भारत में एचआईवी के रोगियों की संख्या लगभग 2.1 मिलियन (इक्कीस लाख) बताई गई है। इसी जानलेवा संक्रमण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिये विश्व में प्रतिवर्ष 01 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस (वर्ल्ड एड्स डे) मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन) ने सबसे पहले विश्व एड्स दिवस को वैश्विक स्तर पर मनाने की शुरुआत अगस्त 1987 में की थी । एड्स से बचाव के लिये जरुरी है कि सभी सुझाये गये सुरक्षा उपायों यथा संक्रमित व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन सम्बन्ध, एड्स संक्रमित व्यक्ति से रक्ताधान (ब्लड ट्रांसफ्यूजन), एड्स संक्रमित व्यक्ति पर इस्तेमाल की गई इंजेक्शन की सुई के उपयोग और एड्स संक्रमित व्यक्ति के ब्लेड, उस्तरे, टूथब्रश आदि के उपयोग के निषेध से एड्स से बचा जा सकता है । इस सम्बन्ध में समाज में जागरूकता पैदा करने के दृष्टिकोण से विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है। वर्ष 1996 में एड्स पर संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक स्तर पर इस से बचाव के लिये प्रचार और प्रसार का काम संभालते हुए साल 1997 में विश्व एड्स अभियान के तहत संचार, रोकथाम और शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया था।


एड्स संक्रमितों से दूरी नहीं पालें उनको समाज़ का अविभाज्य अंग माने

विश्व एड्स  दिवस मनाने का उद्देश्य इस संक्रमण के कारण होने वाली महामारी- "एड्स" के बारे में हर उम्र के लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाना है। शुरुआती दौर में विश्व एड्स दिवस को सिर्फ बच्चों और युवाओं से ही जोड़कर देखा जाता था जबकि इसका संक्रमण किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है. इसलिये बाद में इसे व्यापक स्वरुप देकर हर उम्र के लिये जागरूकता का प्रचार-प्रसार करना आरम्भ किया गया ।विश्व एड्स दिवस पर एड्स संक्रमण से दिवंगत व्यक्ति के लिये शोक व्यक्त करने की भी परम्परा हैं । विश्व के विभिन्न देशों की सरकारें, वहाँ के स्वास्थ्य अधिकारी और गैर सरकारी संगठन एड्स की रोकथाम और नियंत्रण के लिये इस दिन शैक्षिकऔर जनजागरुकता के कार्यक्रम भी आयोजित करती है । एड्स के सभी जागरूकता कार्यक्रम में इन दिनों यह मानवीय पक्ष भी जोड़ा जा रहा है कि एड्स से संक्रमित व्यक्ति के प्रति व्यवहार में पर्याप्त सावधानी रखें क्योंकि उनके हमारे बीच होने से हमारे संक्रमित होने की सामान्यत: कोई आशंका नहीं है । उनको समाज का ही एक हिस्सा मानकर यदि हम उन्हें स्वीकार करेंगे तो वो इस रोग-प्रतिरोधक क्षमता की कमी की असामान्य स्थिति के साथ भी जीने को यत्नशील रहेंगे । एड्स पीड़ित को अस्पर्शय मानने से हम उनके भीतर एक हीनभावना पनपायेंगे जिससे उनका जीना दुष्कर हो जायेगा। इसी परिप्रेक्ष्य में विश्व एड्स दिवस पर हम एड्स पीड़ितों को यह संदेश देकर कि- "एड्स के साथ जीना भी सर्वथा मुमकिन है" हम उनका मनोबल बढ़ायेंगे ।

कोरोना संक्रमण से बाधित हुई एड्स की जीवनरक्षक दवाओं की आपूर्ति

विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि कोरोना संकट की वजह से एड्स की जीवनरक्षक दवाओं की आपूर्ति बाधित हुई है । संगठन के एक सर्वे के अनुसार तिहत्तर देशों ने चेताया है कि कोविड-19 महामारी के कारण उनके यहां एड्स की जीवनरक्षक दवाओं का स्टॉक ख़त्म हो सकता है । वहीं, चौवीस देशों ने कहा है कि उनके यहां एड्स की ज़रूरी दवाएं या तो बहुत कम हैं या उनकी आपूर्ति बुरी  तरह से बाधित हुई है । स्थिति की गंभीरता काअनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉक्टर टेड्रस एडहॉनम गेब्रियेसुस ने इस स्थिति को- "बेहद चिंताजनक" बताया है। उन्होंने कहा, “दुनिया के देशों और उनके सहयोगियों को ये सुनिश्चित करना होगा कि एचआईवी से ग्रसित लोगों को जीवनरक्षक दवाएं मिलती रहें। हम कोविड-19 की वजह से एड्स की वो जंग नहीं हार सकते जिस पर हमने बड़ी  मुश्किल से जीत हासिल की थी। इधर यू एन एड्स (यूनाइटेड नेशन्स प्रोग्राम ऑन एड्स) की एक रिपोर्ट में यह उद्धृत किया गया है कि भारत के लोगों को कोरोना वायरस महामारी के‌‌ दौरान लगाए गए लॉकडाउन के कारण गर्भनिरोधक दवाएं और निरोध नहीं मिल सके हैं। चिकित्सा क्षेत्र के यौन व्यवहार के मनोवैज्ञानिक इसे अनचाहे गर्भ, नये बच्चों के जन्म और यौन संचारित रोगों की बढ़ोत्तरी की वजह मान रहें हैं । यूएन एड्स के कार्यकारी निदेशक का इस मामले में यह कहना है कि, एड्स को रोकने की दिशा में यह चूक बहुत भारी पड़ सकती है। ऐसे में, केवल आकर्षक कार्यक्रमों की शुरूआत करने भर से एड्स या एचआईवी को रोकना संभव नहीं होगा बल्कि, वैश्विक स्तर पर इसे रोकने के लिए महामारी के दौरान उन लोगों को उपचार और मदद में प्राथमिकता देनी होगी, जिन्हें सबसे ज्यादा जोखिम वाले संवर्ग में माना जाता है।

एड्स नियंत्रण की प्रगति की रफ्तार अभी भी विश्वव्यापी नहीं है

विश्व एड्स दिवस की वर्ष 2020 की थीम है- "एड्स
महामारी की समाप्ति के लिये प्रयत्नों का लचीला और प्रभावी होना जरुरी है "। इस थीम का मंतव्य एड्स नियंत्रण योजनाओं और अभियानों को पर्याप्त लचीला और प्रभावी बनाना है जिससे प्रक्रियागत कारणों से एड्स नियंत्रण का काम बाधित न हो। इस बारे में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ,ने एड्स नियंत्रण कार्यक्रम पर हाल ही में बड़े तल्ख अंदाज में यह कहा था कि हम पिछले तीन दशक से भी अधिक समय से विश्व एड्स दिवस मना रहे हैं पर इतने लम्बे समय के बाद भी  एचआईवी से जुड़ी हमारी पहल दोराहे पर खड़ी है। हम किस राह को चुनते हैं, इसी से यह तय होगा कि यह महामारी क्या नया रूप लेगी- क्या 2030 तक हम एड्स को समाप्त कर पाएंगे, या भविष्य की पीढ़ियां भी इस विनाशकारी रोग के बोझ तले दबी रहेंगी? इस महामारी के निदान और उपचार की दिशा में काफी प्रगति हुई है और रोकथामकारी प्रयासों से लाखों नए संक्रमणों को रोका गया है फिर भी प्रगति की रफ्तार विश्वव्यापी अपेक्षा पर खरी नहीं उतर रही है । नए एचआईवी संक्रमणों में गिरावट की गति पर्याप्त तेज नहीं है। कुछ क्षेत्र पिछड़ रहे हैं और वित्तीय संसाधन पर्याप्त नहीं है। एचआईवी की जांच में बढ़ोतरी के लिए अब भी समय है। अधिक से अधिक लोगों को उपचार उपलब्ध कराने, नए संक्रमणों को रोकने और पीड़ितों के साथ संवेदनशील व्यवहार को अपनाने के लियेअभी भी समय है पर इस निर्णायात्मक मोड़ पर हमें सही राह चुननी ही होगी अन्यथा आने वाली पीढ़ियां हमें कभी माफ नहीं कर पायेगी।
 
राजा दुबे

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