Thursday, December 3, 2020

दूबरे और उस पर दो आषाढ़ !




खेती-किसानी से जुड़ी एक लोकोक्ति है कि- "दूबरे
और उस पर दो आषाढ़"। इस लोकोक्ति का अभिप्राय
है कि किसान को आषाढ़ माह में बोवनी सहित कई 
कड़ी मेहनत के काम करना होते हैं और ऐसे में यदि
कोई किसान दुबला हो और हिन्दी पँचांग के अनुसार आषाढ़ अधिक मास हो यानी दो आषाढ़ हो तो परेशानी तो बढ़ेगी है। यह लोकोक्ति परेशानी में और परेशानी की बात करती है। परेशानी में और परेशानी का ऐसा ही वाक्या इस साल भोपाल में देखने को मिला। भोपाल में छत्तीस साल पहले जो गैस रिसाव की भयावह औद्योगिक दुर्घटना हुई थी उसमें लगभग पैंतीस हजार लोगों की मृत्यु हो गई थीं, गैस का असर इतना व्यापक था कि गैस रिसने के बाद केवल चौबीस घण्टों में ही  3787 लोग दिवंगत हो गये थे। लाखों गैस पीड़ित गंभीर जानलेवा बीमारियों के शिकार हुए थे। उस जहरीली गैस से पीड़ितों के बच्चे भी गंभीर बीमारियों के शिकार हुए। समूचे विश्व के साथ देश, प्रदेश और भोपाल में भी जब कोरोना का संक्रमण बढ़ा तो सबसे ज्यादा कहर इन गैस पीड़ितों पर ही बरपा। कोरोना संक्रमण के इस दौर में गैस पीड़ित सबसे ज्यादा जोखिम वाले माने गये क्योंकि उनमें से अधिकांश हृदय रोग, मधुमेह, तपेदिक और किडनी तथा फैंफड़ों की बीमारियों से ग्रस्त थे। 

गैस पीड़ित कोरोना के सबसे सहज (सॉफ्ट) शिकार हो रहे थे। इस बात का अंदाज़ा इसी एक आंकड़े से लगाया जा सकता है कि कोरोना के शुरुआती दौर में भोपाल में कोरोना संक्रमण से अप्रैल 2020 में जिन तेरह व्यक्तियों की मृत्यु हुई थी उनमें से बारह गैस त्रासदी के पीड़ित थे। इस एक भयावह स्थिति की और जब गैस प्रभावित इलाकों में कार्यरत संगठनों ने, कलेक्टर, भोपाल का ध्यान खींचा तो उन्होंने जिला प्रशासन के पास उपलब्ध पांच लाख गैस पीड़ितों को एस.एम.एस.भेजकर उन लोगों की पहचान की जो क्षयरोग या फैंफड़ों के गंभीर रोगों से पीड़ित हैं। जिला प्रशासन ने इन सभी को मास्क और सेनेटाइजर देने की पेशकश भी की और उन्हें घर पर ही रहने की सलाह दी। उस समय कलेक्टर भोपाल ने प्रत्येक गैस पीड़ित तक पहुँचने की बात भी की गई थी मगर वैसा हुआ नहीं। गैस पीड़ित क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण का सर्वेक्षण भी करवाया गया मगर उसके बाद भी गैस पीड़ित कोरोना संक्रमित होते रहे ।

इस बीच मध्यप्रदेश में सियासी गतिविधियां बढ़ीं और 
नई सरकार आ गई। इस सरकार के आते ही गैस त्रासदी के पीड़ितों और उनके परिजन के लिये बनाये गये नामांकित अस्पताल भोपाल मेमोरियल हास्पिटल एण्ड रिसर्च सेंटर को कोरोना के इलाज के लिये आरक्षित कर दिया गया और वहाँ गँभीर बीमारियों का इलाज करवा रहे गैस पीड़ितों को भी शहर के दीगर अस्पताल के लिये डिस्चार्ज कर दिया गया । गैस पीड़ितों के अधिकार के लिये लड़ रहे संगठन ने जब इस मामले में प्रदेश के उच्च न्यायालय में याचिका दायर की तो इस अस्पताल को गैस पीड़ितों और उनके परिजन के लिये खोलना पड़ा मगर तब तक कई गैस पीड़ित इस निष्कासन के कारण जान गंवा बैठे और इतना ही नहीं इस मामले में याचिका दायर करने वाली  समाजसेविका महिला की भी मृत्यु हो गई।

हाल ही में गैस पीड़ितों की लड़ाई लड़ने वाले संगठनों ने आधिकारिक दस्तावेज के आधार पर यह बताया है कि भोपाल में कोरोना के कारण जो 650 मरीज़ मरे हैं उनमें से 254 अर्थात् लगभग 57 प्रतिशत गैस पीड़ित हैं। इतना ही नहीं गैर गैस पीड़ितों की कोरोना से मृत्यु दर से गैस पीड़ितों की कोरोना से मृत्यु दर साढ़े छ गुना ज्यादा है। गैस त्रासदी को घटित हुए छत्तीस साल हो गये हैं और अब इस त्रासदी के कारण गंभीर रोगों से प्रभावितों की लड़ाई लड़ रहे गैर सरकारी संगठनों का केन्द्र और राज्य सरकार से मोहभंग हो गया है मगर वे इस लड़ाई  को अधर में नहीं छोड़ना चाहते हैं ।इसी सिलसिले में भोपाल गैस कांड के प्रभावितों ने डॉव केमिकल और उसकी मालिक कंपनियों से अतिरिक्त मुआवजे की मांग रखी है। इन गैस पीड़ितों का दावा है की 2 व 3 दिसंबर 1984 को भोपाल में रिसी मिथाइल आइसोसायनेट गैस से जो नागरिक प्रभावित हुए थे और पीढ़ी दर पीढ़ी अभी भी हो रहे हैं, उन पर वैश्विक महामारी कोरोना का ज्यादा असर पड़ा है। 

भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष रशीदा बी ने बताया कि भोपाल जिले में कोरोना महामारी की वजह से हुई छप्पन प्रतिशत मौतें गैस पीड़ित आबादी में हुई है जो भोपाल जिले की आबादी की सत्तरह प्रतिशत है, इसलिए सरकार को चाहिए कि यह तथ्य और साथ ही गैस राहत अस्पतालों के रिकार्ड सर्वोच्च न्यायालय में लंबित सुधार याचिका में पेश करे और कंपनी से अतिरिक्त मुआवजा दिलवाए। गैस पीड़ित संगठन लगातार भोपाल के कोरोना संक्रमित गैस पीड़ितों के पक्ष में आवाज उठाते आए हैं। पूर्व में इन्होंने गैस पीड़ित कोरोना संक्रमितों को बेहतर इलाज नहीं मिलने पर आपत्ति जताई थी और सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति के सामने अपना पक्ष रखकर बेहतर इलाज उपलब्ध कराने की मांग की थी।

सवाल यह है कि क्या गैस पीड़ितों की इस लड़ाई में केन्द्र सरकार और मध्यप्रदेश सरकार अपेक्षित साथ देगी? अभी तो हाल यह है कि जिन गैस त्रासदी पीड़ित वृद्ध और विधवाओं को सामाजिक सुरक्षा पेंशन मिलती थी उनकी कई महीनों से पेंशन बंद है मगर सरकार ने इस मामले में चुप्पी साध रखी है.‌

राजा दुबे

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