Sunday, December 13, 2020

स्मृति शेष- अस्ताद देबू




नृत्य शैलियों में नवाचार के समर्थक थे अस्ताद देबू
    
प्रख्यात नर्तक और नृत्य शैलियों में नवाचार के प्रणेता  छिहत्तर वर्षीय अस्ताद देबू का गत बृहस्पतिवार 10 दिसम्बर को मुंबई में निधन हो गया। भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों कथक और कथकली में पारंगत देबू ने दोनों नृत्य विधाओं को मिलाकर अनूठी नृत्य शैली पेश करके प्रसिद्धी हासिल की। अस्ताद देबू का जन्म गुजरात के नवसारी में 13 जुलाई, 1947 को हुआ था। देबू ने युवावस्था में गुरु प्रह्लाद दास से कथक सीखा। बाद में उन्होंने गुरु ई.के पाणिक्कर से कथकली का प्रशिक्षण लिया देबू अविस्मरणीय प्रस्तुतियों की एक व्यापक  विरासत छोड़कर गये हैं। कला के प्रति अपने समर्पण के कारण उन्होंने हजारों दोस्तों, प्रशंसकों के दिलों में जगह बनाई । उनके परिवारजन उनके मित्रों और देश-दुनिया में शास्त्रीय और आधुनिक नृत्य बिरादरी के लिए उनका जाना एक अपूरणीय क्षति है। फिल्म अभिनेता अनुपम खेर ने उनके निधन पर कहा कि आधुनिक नृत्य शैली ने अपने पुरोधा को खो दिया है और भारत ने अपनी एक सांस्कृतिक निधि  गँवा दी है ।

नृत्य शैलियों के संलयन गढ़ने के कारण पहचाने जाते हैं देबू

देबू ने परंपरागत एवं आधुनिक शैली को मिलाकर नृत्य की एक नयी विधा तैयार की। कथक के साथ-साथ कथकली के भारतीय शास्त्रीय नृत्य रुप को , एक अद्वितीय संलयन के रुप में गढ़ने के नवाचार के लिये पहचाने जाने वाले नृत्यगुरु अस्ताद देबू  एक प्रयोगधर्मी कलाकार थे । अपनी प्रयोगधर्मी शैली में उन्होंने 70 से ज्यादा देशों में एकल, सामूहिक और युगल नृत्य की प्रस्तुतियां दीं। उन्हें समकालीन आधुनिक नृत्य  अग्रदूत और इस क्षेत्र में नवाचार के प्रणेता के रुप में जाने जाते हैं । उनके नृत्य और  समन्वित नृत्यशैली से कई युवाओं ने प्रेरणा। ली । उम्र के इस पड़ाव पर जब  कलाकारों की सक्रियता लगभग चुक जाती है वो सतत सक्रिय रहे ।अस्ताद देबू एक आधुनिक नृत्य शब्दावली बनाने के लिए जाने जाते है जो विशिष्ट रूप से भारतीय थी ।

धुन के पक्के देबू की आसान नहीं रही कला यात्रा

देबू की कला यात्रा आसान नहीं रही मगर धुन 
के पक्के अस्ताद ने समकालीन नृत्यरुपों को साधा ।
ऐसे समय में जब वैश्विक अथवा अंतरराष्ट्रीय नृत्य का विचार आज जितना लोकप्रिय नहीं था, तब देबू ने दुनिया भर से नृत्य शैलियों को अपनाया। यह सब वैसे भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूप सीखने के साथ ही उन्होंने शुरू किया था । पहले जमशेदपुर और फिर कोलकाता में कथक में विधिवत शिक्षा ली । माता-पिता ने सहारा दिया। भारत में आने वाले अमेरिकी डांस कंंपनी के अमूर्त नृत्य को देखने के बाद उनके जीवन ने एक अलग मोड़ लिया। भारत में चाहे वह उदय शंकर के प्रयोग हों या मणिपुरी और कथकली के गाँव के प्रयोग, सभी देबू ध्यानसे देख रहे थे,आत्मसात कर रहे थे । इस बीच अस्ताद कुछ फिल्मों से भी जुड़े मगर उसमें जज़्ब नहीं हुए ।

देबू संभवत: पहले पेशेवर पूर्णकालिक नर्तक थे 

जब पूर्णकालिक कला की अवधारणा प्रचलित नहीं थी, तो देबू ने पूर्णकालिक नर्तक और नर्तक का पेशा चुना। जब काम करने का समय था तब देबू ने प्रशिक्षण की सुरक्षित जीवन शैली नहीं अपनाई। उम्र के इस पड़ाव पर भी, नृत्य परंपरा में बुनियादी काम करने के बाद भी, देबू को प्रायोजकों, समर्थकों को खोजना पड़ा । समकालीन नृत्य में आज एक नई पीढ़ी है। कुछ होनहार काम कर रहे हैं। लेकिन कई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 'सहयोग' के अवसरों की तलाश कर रहे हैं, यह भूल कर की  कि कला साधना एक 
तपस्या है। इसके लिये कड़ी मेहनत की आवश्यकता होती है ,जैसा कि अस्ताद देबू ने किया । 

भारत भवन भोपाल के ट्रस्टी भी थे , अस्ताद देबू

नृत्य के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें वर्ष 1995 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार दिया गया था। वर्ष 2007 में भारत सरकार ने पद्मश्री से भी देबू को सम्मानित किया गया । देबू ने मणिरत्नम औंर विशाल भारद्वाज जैसे फिल्मकारों की फिल्मों और मशहूर चित्रकार एम एफ हुसैन की फिल्म ‘‘मीनाक्षी : ए टेल ऑफ थ्री सिटीज’’ के लिए कोरियोग्राफी भी की थी।
सुप्रसिद्ध नृत्यगुरु अस्ताद देबू भारत भवन , भोपाल के मौजूदा ट्रस्ट में ट्रस्टी भी थे। वे आखिरी बार भोपाल 29 सितंबर 2019 में एक बैठक में शामिल होने और एक कार्यक्रम में आये थे । भारत भवन के ट्रस्ट के ट्रस्टी होने के नाते उन्होंने कई सुझाव और पारम्परिक नृत्य को लेकर बैठक में कई निर्णय भी ट्रस्ट के सदस्यों के साथ लिए थे। जिन्हें वे मार्च से लागू भी करना चाहते थे। देखते हैं कि भारत भवन प्रशासन इस दिशा में कितनी सक्रियता दिखायेगा ।


राजा ‌दुबे


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