Thursday, December 24, 2020

चर्चा में: शिप्रा पाठक



शिप्रा पाठक चर्चित हैं नर्मदा के  प्रति श्रद्धा के कारण


शिप्रा पाठक, जी हाँ शिप्रा, जब हमने कहा कि आपका नाम क्षिप्रा होना चाहिए, शिप्रा क्यों? तब वो पलट कर बोली थीं-"उज्जयिनी (अवंतिका) की मोक्षदायिनी क्षिप्रा नदी को आप किस नाम से पुकारते हैं? शिप्रा ही न! फिर मुझे शिप्रा क्यों नहीं कह सकते?" जी हाँ, यही तेजतर्रार शिप्रा पाठक इन दिनों माँ नर्मदा के प्रति अगाध श्रद्धा के कारण चर्चा में हैं। उत्तर प्रदेश के बदायूँ जिले के दातागंज निवासी डॉ शैलेष पाठक की पुत्री शिप्रा पेशे से इवेंट मैनेजर हैं। काम के सिलसिले में अपने शहर से ज्यादा बेंगलुरू में रहना होता है। देश-विदेश के विभिन्न शहरों में कार्यक्रम के लिए जाना पड़ता है। इस व्यस्तता के बावजूद शिप्रा ने अपनी धार्मिक और अध्यात्मिक आस्था की ज्योति मद्धिम नहीं पड़ने दी। एक धार्मिक पुस्तक के अध्ययन के दौरान ही नर्मदा परिक्रमा के बारे में पढ़ा। बस, वहीं से नर्मदा नदी की पैदल परिक्रमा का संकल्प लिया।

शिप्रा पाठक के मन में माँ नर्मदा (रेवा) की भक्ति की ऐसी लगन लगी कि उन्होंने नर्मदा खण्ड को अपना जीवन समर्पित करने का ही निश्चय कर लिया। ग्वारीघाट तट पर श्वेत वस्त्र, गले में रुद्राक्ष की माला और नंगे पांव आचमन करते देख शिप्रा को कोई भी साध्वी समझ सकता है और माँ नर्मदा के प्रति उनके भक्ति भाव से वे सचमुच साधु ही प्रतीत होती हैं। शिप्रा वस्तुत: एक इंटरनेशनल बिजनेस वुमन हैं। वे अपनी इवेंट कम्पनी के कार्यों के लिए इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, श्रीलंका, हांगकांग और मकाऊ आदि देशों में जा चुकी हैं। शिप्रा बतातीं हैं कि वे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और गुजरात के जरूरतमंदों की खुशहाली के लिए काम करना चाहती हैं। शिप्रा ने नवम्बर  2018 में नर्मदा परिक्रमा ओंकारेश्वर से आरम्भ की थी और केवल 108 दिनों में फरवरी  2019 में ओंकारेश्वर में ही पूरी की थी। ओंकारेश्वर से खम्भात की खाड़ी, भरूच, जबलपुर, अमरकंटक, होशंगाबाद होते हुए दोनों तट की 3600 किलोमीटर  परिक्रमा 108 दिन में करने के बाद उन्होंने नर्मदा तटों के प्राकृतिक सौंदर्य और जीवन दर्शन को अपने ढंग से देश-विदेश के लोगों तक पहुंचाने के लिए एक वृत्तचित्र  बनाने का निर्णय भी लिया है। वृत्तचित्र बनाने वाली टीम के ग्यारह तकनीशियन भी उनके साथ हैं। वे ग्यारह ज्योतिर्लिंग, कैलाशधाम, मानसरोवर, चार धाम, गोवर्धन और कामदगिरि की परिक्रमा भी कर चुकी हैं। 

शिप्रा पाठक ने बताया कि उन्होंने अंग्रेजी विषय लेकर
पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री लेने के बाद पुणे में टेलीकॉम कम्पनी में नौकरी की। फिर अपनी इवेंट मैनेजमेंट कम्पनी बना ली। उन्होंने गाँव में श्यामा तुलसी, एलोवेरा, लेमन ग्रास आदि औषधीय पौधों की खेती भी शुरू की और सौ से अधिक लोगों को रोजगार दिया। मगर अंततः कम्पनी और खेती को छोड़ कर अब उन्होंने भक्ति पथ को अपनाया है।शिप्रा पाठक कहतीं हैं कि अकेले नर्मदा परिक्रमा करना चुनौतीपूर्ण था। उन्होंने नर्मदा परिक्रमा शुरू की तो सभी ने उन्हें बेटी जैसा प्यार दिया। बेटों को भले ही हर कोई मदद न करें, लेकिन बेटियों के लिए सबके दरवाजे खुल जाते हैं। शिप्रा का यह कायाकल्प उस युवा पीढ़ी के लिये एक सबक है जो तकनीकी युग में भाग-दौड़ भरी जिंदगी में इंटरनेट, सोशल मीडिया और अपने करियर को सवारने में लगी है, सामाजिक सरोकारों को नजरअंदाज करने वाली इसी पीढ़ी की एक शिप्रा पाठक भी है जिसने अपने कदमों से मिसाल बनाने के लिए हैरान करने वाला कदम उठाया है। 

राजा दुबे
 

No comments: