Sunday, February 7, 2021

शब्द-दर-शब्द राष्ट्रीयता को पिरोकर गीतमाला बनाते थे कवि प्रदीप

 शब्द-दर-शब्द राष्ट्रीयता को पिरोकर गीतमाला बनाते थे कवि प्रदीप


देशभक्ति के सम्भवत : सबसे प्रसिद्ध गीत -"ऐ मेरे वतन के लोगों .." के लिखने वाले कवि प्रदीप राष्ट्र प्रेम, उच्चतम जीवन मूल्यों और मानवता के विलक्षण प्रणेता थे। कवि प्रदीप ने वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि स्वरूप यह गीत लिखा था और इस प्रसंग को कि लता मंगेशकर द्वारा गाए इस गीत का तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में 26 जनवरी 1963 को दिल्ली के रामलीला मैदान से सीधा प्रसारण किया गया और गीत सुनकर जवाहरलाल नेहरू की आंखें भर आईं थीं, हर कोई जानता है और यह प्रसंग अब इतिहास बन गया है।

यह व्यवस्था की विडम्बना ही कही जाएगी कि इस गीत की रायल्टी को लेकर कवि प्रदीप को कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। प्रदीपजी ने इस गीत के राजस्व को युद्ध में शहीद सैन्य अधिकारियों की विधवा के लिये बनाये गये कोष में जमा करने की अपील की थी। मुंबई उच्च न्यायालय ने 25 अगस्त 2005 को संगीत कंपनी एचएमवी को इस कोष में अग्रिम रूप से दस लाख रुपये जमा करने का आदेश देकर कवि प्रदीप के सपने को साकार किया था। अपने लेखन को इन्हीं चुनिंदा विषयों राष्ट्रप्रेम, उच्चतम जीवन मूल्य और मानवता तक सीमित रखने वाले कवि प्रदीप राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत गीतों केअप्रतिम रचियता थे और शब्द-दर-शब्द राष्ट्रीयता की भावना को पिरोकर उसकी गीतमाला बनाने वाले वाले कवि प्रदीप एक उत्कृष्ट लेखक होने के साथ एक अच्छे पार्श्वगायक भी थे। देश प्रेम के गीत लिखने का जज़्बा प्रदीप जी में उन्हीं दिनों से था जब वे बतौर छात्र इलाहाबाद में पढ़ते थे. 

कवि प्रदीप का मूल नाम रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी था। उनका जन्म मध्यप्रदेश  के उज्जैन जिले के बड़नगर कस्बे में हुआ था । कवि प्रदीप की पहचान 1940 में रिलीज हुई फिल्म " बंधन " से बनी। हालांकि वर्ष 1943 की गोल्डन जुबली फिल्म किस्मत के गीत - "दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है " ने उन्हें देशभक्ति गीत के रचनाकारों में अग्रगण्य बना दिया। तब ब्रिटिश सरकार ने उनकी गिरफ्तारी के आदेश भी  दिए थे और कवि प्रदीप को भूमिगत होना पड़ा था।

पांच दशक लम्बे अपने कैरियर में कवि प्रदीप ने इकहत्तर फिल्मों के लिए सत्रह सौ गीत लिखे। उनके देशभक्ति गीतों में फिल्म बंधन में -" चल चल रे नौजवान ", फिल्म जागृति मे " आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं ", " दे दी हमें आजादी बिना खडग ढाल " और फिल्म जय संतोषी मां  में " यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ मत पूछो कहाँ-कहाँ " काफी लोकप्रिय हुए थे । इन गीतों को उन्होंने फिल्म के लिए स्वयम् गाया भी था।आपने हिंदी फ़िल्मों के लिये कई यादगार गीत लिखे। भारत सरकार ने उन्हें सन 1997-98 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया था। कवि प्रदीप के सम्‍मान में मध्‍यप्रदेश सरकार के कला एवं संस्कृति विभाग ने कवि प्रदीप राष्‍ट्रीय सम्‍मान की स्‍थापना वर्ष 2013 में  की । 

वरिष्ठ पत्रकार जयप्रकाश चौकसे कवि प्रदीप के सरल व्यक्तित्व के कायल हैं वे उन्हें याद करते हुए वे कहते हैं, -" उन्होंने साहित्य का बहुत ज्यादा अध्ययन नहीं किया था, वो जन्मजात कवि थे और उन्हें मैं देशी ठाठ का स्थानीय कवि कहूंगा, यही उनका असली परिचय है ।वे सादगी भरा जीवन जीते थे । किसी राजनीतिक विचारधारा को नहीं मानते थे । बौद्धिकता का जामा उनकी लेखनी पर नहीं था, जो सोचते थे वही लिखते थे, सरल थे, सहज थे और यही उनकी ख़ासियत थी । "

अपने कॉलेज के दिनों में कवि प्रदीप इलाहाबाद में आनंद भवन के काफी नज़दीक रहते थे । वहीं जवाहरलाल नेहरु का घर था जहाँ वो कई राजनीतिक बैठकों में शामिल हुए । इन सब से वो काफी प्रभावित हुए और उन्हें महसूस हुआ कि वो भी देश के लिए कुछ करें । कवि प्रदीप ने एक बार कहा था ,- ‘ मैंने अपना स्नातक  पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद अध्यापन का कोर्स करने के बारे में विचार किया था लेकिन भाग्य ने मेरे लिए कुछ और हीं सोचा हुआ था । मुझे बंबई में एक कवि सम्मेलन में बुलाया गया । वहीं बम्बई टॉकीज के मालिक हिमांशु राय ने प्रदीप को कंगन  फिल्म के लिए साइन किया और उन्हें दो सौ रुपए प्रतिमाह  का ऑफर दिया था , बाकी सब तो अब इतिहास है ।"


उन्होंनेे अपने प्रारंभिक जीवन से ही कविता लेखन और उसका पाठ करना शुरू कर दिया था ।वे कहते थे उस समय कई लोग लिखते थे इसलिए मैं बेहद उत्साहित था मैं जो कहता था उसे सुनने वाले पसंद करते थे ।लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद प्रदीप राष्ट्रवादी आंदोलन से जुड़ गए. वो कवि सम्मेलन में जाया करते थे जहां प्रदीप ने अपना उपनाम का इस्तेमाल करना शुरू किया । देशभक्ति गीतों के शिखर पुरुष कवि प्रदीप ने
राष्ट्रीयता की अलख जगाने का ऐसा दुष्कर कार्य उस समय किया जब देश की सत्ता पर विदेशी आक्रांता
काबिज़ थे । 


राजा दुबे

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