Thursday, August 19, 2021

पंचायती राज का सपना: राजा दुबे



जनजातीय अँचल की यात्रा से गढ़ा था सशक्त पंचायत राज का सपना

वर्ष 1984 में इंदिरा गाँधी की दुर्भाग्यपूर्ण हत्या के बाद जिस औचक तरीके से देश की सत्ता राजीव गाँधी के  हाथ आई थी तब वे राजनीतिक गुणा-भाग से ज्यादा वाकिफ नहीं थे और सच तो यह है कि वे सत्ता में  लगभग छः साल तक रहने के बाद भी न तो राजनैतिक गुणा-भाग और न ही सियासी जोड़-तोड़ से वाकिफ़ हो पाये मगर देश की भलाई के लिए वे क्या कर सकते हैं इसका इलहाम उन्हें था। प्रधानमंत्री के रुप में अपने पहले और एकमात्र कार्यकाल में उन्होंने दूरसंचार क्रांति और कम्प्यूटर क्रांति के माध्यम से देश को सूचना प्रौद्योगिकी की मुख्यधारा से जोड़ा, मतदान की उम्र सीमा इक्कीस वर्ष से घटाकर अट्ठारह साल कर चुनाव में युवाओं की सहभागिता बढ़ाई और हर जिले में राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीण क्षेत्र में एक आदर्श  सहशिक्षा आवासीय केन्द्र के रुप में नवोदय विद्यालय खोला । मगर इन सबसे अहम् निर्णय था देश मेंं सत्ता के विकेंद्रीकरण के लिए त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के सशक्तिकरण और ग्राम स्वराज का एक आदर्श प्रारुप बनाने का। उनकी हत्या के बाद उनके उत्तराधिकारी प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव ने पंचायत राज एवम् ग्राम स्वराज (संशोधन) अधिनियम के लिए संविधान में तिहत्तरवें और चौहत्तरवें संविधान संशोधन के माध्यम से राजीव गाँधी का यह सपना साकार किया। राजीव गाँधी ने बतौर प्रधानमंत्री अपनी सहधर्मिणी सोनिया गाँधी के साथ देश के जनजातीय अँचलों का व्यापक दौरा किया और इन अँचलों के गाँव- गाँव जाकर पंचायतों के हाल-अहवाल का जायजा लिया। सच तो यह है कि जनजातीय अँचल की इन्हीं यात्राओं में उन्होंने सशक्त पंचायती राज का सपना गढ़ा।

वर्ष 1985 की इसी यात्रा श्रृँखला मेंं जब राजीव गाँधी और सोनिया गाँधी मध्यप्रदेश के छत्तीसगढ़ अँचल और पश्चिमी मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के आदिवासी गांवों में गये तो आदिवासियों से चर्चा कर और उस क्षेत्र के आदिवासी गाँव में आदिवासी परिवार के साथ ही रात्रि विश्राम कर और उनके साथ उन्हीं के घर में बना खाना खाकर उन्होंने उनकी समस्याओं और उनकी क्षमता को पहचाना। झाबुआ जिले के प्रवास में देवीगढ़, कट्ठीवाड़ा सहित कई गाँवों में गये। राजीव गाँधी ने यह  यात्रा जनजातीय अँचल के सुदूरतम गाँवों तक पहुंचने के लिये हेलीकॉप्टर से की थी और यात्रा की योजना बनाने वालों से कहा था कि हैलीपेड उस आदिवासी गाँव के पंचायत भवन के पास बनाएं जिससे वे पैदल पंचायत भवन पहुँचकर सरपंच और गाँव वालों से मिल सकें।

इस प्रवास मेंआलीराजपुर अनुविभाग के जिन पाँच गाँवों में राजीव-सोनिया को जाना था उनका क्रम तय था। पहले गाँव में तो उनका हेलीकॉप्टर तय स्थान पर उतरा मगर फिर दूसरे और तीसरे गाँव को छोड़कर चौथे गाँव कट्ठीवाड़ा में पहुँच गया। वहाँ हैलीपेड भी था पंचायत भवन भी था, पंचायत भवन में एक कुर्सी पर सरपंच भी बैठे थे। जिला प्रशासन के कुछ अधिकारी भी थे मगर चूँकि प्रधानमंत्री को अभी उस गांव नहीं आना था अतः जिला प्रशासन की भी दो नम्बर की टीम यानी डीएसपी, तहसीलदार और जिला सहकारी बैंक के प्रबंधक वहां मौजूद थे। हेलीपेड से उतरकर राजीव गाँधी, सोनिया गाँधी और प्रदेश के मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा पंचायत भवन आये। सरपंच अपनी कुर्सी पर बैठे थे। राजीव और सोनिया जब थोड़ा झुककर पंचायत भवन में घुसे तो मौजूद अधिकारियों ने सरपंच को कहा दिल्ली से बड़े बाबा आये हैं, खड़े हो जा।सरपंच टस से मस नहीं हुआ। दूसरी बार अधिकारियों ने जब सरपंच को उठाना चाहा तो वे चिढ़कर बोले-"हूँ नीं उठूंगा, म्हने कलेक्टर सा'ब बोल्या है"।इस बार राजीव गाँधी ने टोका- "बैठे रहने दीजिए उन्हें इस कुर्सी पर, यह सरपंच की कुर्सी है और वे सरपंच हैं- "ही हेज राइट टू सिट ऑन दैट चेयर"। इसके बाद राजीव गाँधी ने सरपंच से देर तक बात की और वे इस बात से हैरान भी हुए कि केन्द्र सरकार की योजनाओं का पैसा जो पंचायतों को भेजा जाता है वो पूरी तरह से उन तक नहीं पहुंचता है। इसके बाद ही उन्होंने विभिन्न योजनाओं को पैसा सीधे पंचायतों को भेजने के प्रावधान की बात की। अपने कार्यकाल में पंचायती राज और ग्राम स्वराज का जो सपना राजीव गाँधी ने देखा था वो सपना वस्तुत: जनजातीय अँचल की इन्हीं यात्राओं में गढ़ा गया था। आज जो पंचायतों को हम इतना सशक्त देख रहें हैं वो राजीव गाँधी की ही परिकल्पना थी। इसी प्रवास में देवीगढ़ की आमसभा में उन्होंने कहा था कि गाँथीजी ने जो हर गाँव को गणतंत्र कहा था वह ग्राम स्वराज ही तो था और हमारे पंचायती राज के यही  निर्वाचित पंचायत प्रतिनिधि देश में मजबूत पंचायत राज और ग्राम स्वराज का सपना सच करेंगे। 

राजा दुबे

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