Saturday, December 5, 2009

जो ब्रेक हो गया उसे कौन फ़ॉलो करता हैं...

पा सच में एक बेहतरीन होगी। होगी इसलिए बोल रही हूँ क्योंकि मैंने देखी नहीं है। खैर, फिलहाल बात पा की नहीं बल्कि ख़बर पहुंचानेवाले अख़बारों और चैनलों की। जिस दिन से अमिताभ बच्चन अभिनीत इस फ़िल्म के बारे में चर्चा शुरु हुई तब से ही लग रहा है कि हरेक अख़बार और ख़बरिया चैनल ऐसे बच्चों की खोज में जुट गया हैं। रोज़ाना टीवी पर एक या दो ऐसे बच्चों को बैठा दिया जाता हैं। प्रोजेरिया की बीमारी से पीड़ित वो बच्चे न तो कुछ समझ पाते हैं और न ही उन्हें ये अहसास हो पाता हैं कि कैसे उनके नाम पर टीआरपी लपकी जा रही है। शो के दौरान कई फ़िल्मी सितारे और गायक उनके लिए कुछ कह जाते हैं या गाना गा देते हैं। मुझे ये ऐतराज़ ना होता अगर ये चैनल सिर्फ़ ख़ुद को अलग और समय के साथ चलनेवाला दिखाने के लिए ही ये काम ना करते। पा कल रीलिज़ हुई है और आनेवाले कुछ हफ़्तों तक सुर्खियाँ बनी रहेगी। लेकिन, दुखद बात ये है कि वो बच्चे जिन्हें चैनलों पर दिखाया जा रहा हैं उनकी ज़िंदगी भी इन चैनलों के लिए तब तक की ही हैं। इसके बाद वो जी रहे हैं या मर रहे हैं। इससे किसी को कोई लेनादेना नहीं होगा। पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान न्यूज़ का ही एक फ़ॉर्मेट पढ़ा था- फ़ॉलो अप न्यूज़। माने कि ख़बर जो आपने प्रसारित की उसे तब तक पकड़े रहिए जब तक कि तह तक ना पहुंच जाए या फिर परेशानी जड़ से ना मिट जाए। लेकिन, आज का ज़माना तो ब्रेक करने का है। अब जो ब्रेक हो गया उसे कौन फ़ॉलो करता हैं...

2 comments:

कुश said...

आजकल तो लोग ट्विटर पर फोलो करने लगे है.. न्यूज कको फोलो किया जाना लगे.. तो कुछ बात बने..

दिगम्बर नासवा said...

ये सब पा का पब्लिसिटी स्टंट है .......