Tuesday, July 13, 2010
एक जातिविहीन समाज
बहुत दिन हुए एक ब्लॉग पर पोस्ट पढ़ी थी। किसी महिला ब्लॉगर ने अपने दो जवान होते बेटों के बारे में गर्व के साथ बताया था कि दोनों ही माता-पिता की मर्ज़ी से शादी करेंगे और इसके साथ ही उन बेटों की लव मैरिज के बारे में राय भी लिखी हुई थी। मुझे उनके बेटों की सोच बहुत ही घटिया लगी थी और उनके ब्ल़ग पर आए कुछ चालीसेक कमेन्ट के बीच मैंने अपना विरोध दर्ज भी किया था। जैसाकि अमूमन होता है वाह-वाह के बीच वो विरोध दब गया। खैर, ये बात यहाँ सिर्फ़ इसलिए क्योंकि अगर इन जैसे लोगों की तादाद हमारे देश में बहुत ज्यादा हैं। आधे से अधिक माता-पिता को बच्चों की पसंद उनकी मर्ज़ी लगती है। मेरे मुताबिक़ दोनों में एक अच्छा खासा अंतर हैं। बात आज लव कमान्डो की। दिल्ली और उसके आसपास के इलाका में प्यार करनेवालों की मदद के लिए कुछ लोग सामने आए हैं। ये लोग खासकर ऐसे प्रेमी जोड़ों को बचा रहे है जोकि खाप पंचायतों से डरकर भाग रहे हैं। इस कमांडो की स्थापना के पीछे मक़सद है एक जातिविहीन समाज का। इससे अब कुछ चालीस से ज़्यादा लोग जुड़ चुके हैं। कोई वकील है, तो कोई डाक्टर, तो कोई शिक्षक। इन सब का मक़सद है ऐसे जोड़ों को सुरक्षा प्रदान करना और प्रेम विवाह को प्रोत्साहित करना है। इसकी शुरुआत के एक हफ्ते में ही अब तक इन लोगों के पास 10 हज़ार से ज्यादा लोगों के फोन आ चुके हैं। ये लोग छुपकर और अपनी जगह बदल-बदलकर काम कर रहे हैं। इन्हें जितने फोन मदद के लिए आते हैं उतने ही मारने और गाली देने के लिए भी। इनकी बातें सुनकर किसी भी अभिभावक को गुस्सा आ सकता है। खासकर ऐसे को जिसके बच्चे जवान हो। ये लोग फिलहाल तो ऐसे जोड़ों को मिलाने में लगे हैं लेकिन, ये इसके बाद एक मुहिम की शुरुआत में लगे है जहां खुलकर जवानों को प्यार करने के लिए प्रेरित किया जा सकें। प्यार करना या फिर अपनी पसंद से शादी करना कही से भी ग़लत नहीं लेकिन, इस सबके बीच समझदारी और ज़िम्मेदारी का अहसास होना उससे भी ज़रूरी हैं। मुझे नहीं लगता कि हरेक प्यार करनेवाला इतना समझदार होता हैं कि शादी को निभा सकें। केवल प्रेम विवाह करने के लिए प्रेम करना गलत होगा। ज़रूरत आज लव कमांडो से बढ़कर एक ऐसी समूह की है जोकि माता-पिता और बच्चों के बीच बढ़ते जा रहे सोच के अंतर को कम कर सकें। ज़रूरत जातिविहीन समाज के साथ एक ऐसे समाज की है जहां बच्चे बिना किसी डर और झिझक के अपनी बात अपने माता-पिता से कह सकें। किसी भी ग़लत क़दम या फिर किसी भी बदतमीज़ी के लिए पहले ज़िम्मेदार माता-पिता ही होते हैं। बच्चा जो आज है वो उन्होंने ही बनाया है। अगर शुरुआत से ही आप बच्चे को आंखे दिखाकर चुप करने की बजाय उसकी बात सुनेंगे तो आगे जाकर भी वो हरेक बात आपसे कहेंगे। तब शायद ही बच्चों को अपने ही माता-पिता से बचकर रहने की ज़रूरत न हो।
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नज़रिया
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1 comment:
आपके ब्लॉग का फीड पता नहीं क्यों नहीं मिलता है.. आज महीनो बाद आया हूँ तो कई नए पोस्ट दिख रहे हैं.. मगर फीड बर्नर कुछ भी नहीं दिखता है..
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