Friday, September 17, 2010

दी वीकर सेक्स.... महिला या पुरुष?

महिलाओं की समाज से लेकर घर परिवार तक में परिस्थिति के बारे में जब भी बात होती है, वो बेचारी और अबला ही साबित की जाती है। ऐसा नहीं है कि महिलाएं अबला है या फिर गडलत बात का प्रतिकार करना नहीं जानती है। आज के वक़्त में ही नहीं पहले भी ऐसी कई महिलाएं हुई है जोकि इस पुरुषप्रधान समाज में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हो चुकी हैं। लेकिन, आज बात महिलाओं से सशक्तिकरण की नहीं बल्कि उनकी ओर से किए जानेवाले अत्याचारों की। ये बात इस समाज की एक ओर स्याह सच्चाई है कि महिलाएं भी घर के भीतर रहकर पुरुषों पर शारीरिक से लेकर मानसिक रूप से कई अत्याचार करती हैं। मुझे इस बारे में जानकारी बिल्कुल ही नहीं थी। लेकिन, अपनी एक रिपोर्ट के सिलसिले में जब मैं पिछले दिनों आर पी चुघ से मिली तो मुझे मालूम चला कि कैसे महिलाएं पुरुषों को प्रताड़ित करती हैं। कि कैसे महिलाओं की इन प्रताड़नाओं से तंग आकर कई पुरुषों ने आत्महत्या तक कर ली है और कैसे कइयों को मार भी डाला गया हैं। चुघ एक वकील है और पिछले कई सालों से पुरुषों पर हो रहे अत्याचारों के विरूद्ध मोर्चा खोले हुए हैं। चुघ ने एक मैन सेल की स्थापना की है जहाँ आकर पुरुष क़ानूनी सलाह ले सकते हैं। अगर मैं सच कहूँ तो जब पहली बार मुझे इस मुहिम के बारे में जानकारी मिली तो मुझे भी हंसी भी आई थी और चुघ ने भी हमें यहीं बताया कि वो हमेशा से ही हंसी का पात्र रहे हैं। खुद इस समस्या को भुगत चुके चुघ बताते हैं कि वो उनके पास ऐसे दो से तीन केस रोज़ाना आते हैं। जो लोग इस बात पर हंसते हैं उनमें से भी इससे पीड़ित होते हैं। समाज की इस सच्चाई और इस समस्या पर पुरुष खुद पर्दा डालते हैं क्योंकि उनके लिए ये प्रतिष्ठा का प्रश्न होता है। महिलाएं दहेज के विरोध में बनें क़ानून का किस तरह से दुरुपयोग कर करती हैं और कैसे महिला के घरवाले इसे ढाल की तरह उपयोग करते हैं। महिलाएं मानसिक रूप से या फिर ये कहें कि भावनात्मक रूप से इतनी मज़बूत होती हैं कि वो दुख झेल जाती है और पुरुष भावनात्मक रूप से कमज़ोर और महिलाओं पर निर्भर होते हैं ऐसे वो कई बार ऐसे अत्यचारों को सह लेता है। पूरे शूट के दौरान मुझे यही महसूस हुआ कि अगर सिमोन दी बरूआ आर पी चुघ से मिली होती तो क्या वो दी वीकर सेक्स लिखती... हो सकता है कि कइयों को मेरी ये बात ग़लत लगे। कइयों को लगे कि कैसे मैं महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों को छोड़कर पुरुषों की तरफदारी कर रही हूँ। लेकिन, इंसानीयत यही कहती है कि साथ उसका देना चाहिए जो सही हो...

3 comments:

उपेन्द्र नाथ said...

Dipti ji,
bahoot hi sarthak post. bahoot se aaise purush bibiyoe ke julm sahte huye bhi apni izzat ke liye samaj ke samne nahi aa pate. ajj 90 % dahej ke mukdame jhoote hote hai.

Anonymous said...

Sweet site, I hadn't noticed looseshunting.blogspot.com before during my searches!
Carry on the excellent work!

Anonymous said...

Thanks for sharing the link, but unfortunately it seems to be offline... Does anybody have a mirror or another source? Please answer to my post if you do!

I would appreciate if a staff member here at looseshunting.blogspot.com could post it.

Thanks,
Mark