बच्चे
के जन्म के साथ ही उसकी कुण्डली तैयार हो जाती है। साथ ही इस बात की भविष्यवाणी भी
कि वो बड़ा होकर क्या बनेगा? क्या
करेगा? कुण्डली में अगर ये लिखा जाए कि- जातक
बड़ा सराकारी नौकरी करेगा... तब तो माँ-बाप के चेहरे की चमक ही बढ़ जाती है। कई
बार ऐसा लगा कि नौकरी कैसे आपके सितारे निर्धारित कर सकते है। लेकिन, मुझे इस बात
पर पूरा यक़ीन हो चुका है कि ये सब सितारों का खेल है। सरकारी नौकरी करने के लिए
जिन गुणों की ज़रूरत होती है वो इंसान में जन्मजात ही होती है। बातों को एक कान से
सुनना दूसरे से निकालना, कागज़ को इंसान से ज्यादा अहमियत देना, लोगों की शिकायतें
सुनकर भी निर्विकार बैठे रहना और दूसरों की बातें दीवार के आर-पार भी सुन लेना,
आदि-इत्यादि... विद्यार्थियों के लिए संस्कृत का एक श्लोक है जिसमें उनके गुणों को
समझाया गया है जैसे कि कौवे जैसी चेष्टा, कुत्ते जैसी नींद, बगुले जैसा ध्यान,
अल्पहारी, गृहत्यागी। लेकिन, सरकारी नौकरी के लिए जिन गुणों की ज़रूरत होती है
उसका आजतक किसी ने बखान नहीं किया है। सरकारी बाबू की चेष्टा कौवे की तरह न होकर
गिद्द की तरह होती है। वो आसपास के लोगों खासकर जो उनके पास काम लेकर आते है उन पर
आँखें गड़ाए रहते है और उन्हें नोंचने के लिए उनके मरने तक का इंतज़ार भी नहीं
करते। कुत्ते जैसी नींद तो इनके लिए मायने ही नहीं रखती। इनकी होड़ तो अजगर से होती
है, ये फाइलों को निगलकर महीनों तक सोए पड़े रह सकते हैं। बगुला बेचारा तो एक समय
पर एक मछली पर ध्यान लगाए रहता है लेकिन, ये तो एक साथ अपने फायदे और सामनेवाले के
नुक्सान तक पर बराबर नज़रें गड़ाए रख सकते हैं। जहाँ तक बात है अल्पहारी होने की
तो वो क्या होता है इन्हें नहीं मालूम। इनके लिए सुबह दस बजे की चाय, एक बजे का
खाना, चार बजे का नाश्ता सब कुछ काम से भी ज्यादा मायने रखता है। जैसे कि तनख्वाह
इसलिए ही मिल रही हो। गृहत्यागी क्या होता है ये नहीं समझना चाहते, गृह का त्याग
सरकारी यात्रा (जिसे हवाई होना ज़रूरी है) के वक्त होता है। नहीं तो ये घड़ी देखकर
ऑफिस त्याग ने में विश्वास रखते है। और, छुट्टी के दिन तो इसने से सृष्टि के
रचयिता ब्रह्मा भी काम नहीं करा सकते हैं। सरकारी कर्मचारी होने के लिए आपको उस
योग में पैदा होना ज़रुरी है। चेहरे पर कामचोरी करने के बावजूद काम के बोझ से दबे होने
के भाव, गालियाँ सुनने के बाद भी दैवीय चमक का रहना आसान नहीं। और, जैसे देवता
होने के लिए दैवीय गुण ज़रूरी है, राक्षस होने के लिए राक्षसीय होना ज़रूरी है उसी
तरह सरकारी बाबू होने के लिए बाबूईय गुणों का होना भी ज़रूरी है।
2 comments:
सुन्दर!इसमें लोक सभा टीवी के तजुर्बे का भी ज़रूर योगदान होगा :)
विशुद्ध रूप से फतूरीजी :-).
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