Thursday, January 10, 2013

प्रतिशत में ज़िंदगी...


ज़िंदगी को हम भले ही केल्कुलेट करके ना जिए लेकिन, ज़िंदगी ज़रूर हमें सब कुछ केल्कुलेशन्स के हिसाब से देती है। फिर वो खुशियाँ हो या परेशानियाँ। सबकुछ प्रतिशत में... दिल्ली में पैर जमाने और खुद को साबित करने के जोश में पैसों की परवाह के बिना जॉइन की हुई नौकरियों की कम तनख्वाह अब होश आने पर समझ आने लगी है। उसमें हर साल होनेवाली दस फीसदी की बढ़ोत्तरी कुछ ऐसी महसूस होती है जैसे किसी ने ठंड के मौसम में बर्फ़ का पानी सिर पर डाल दिया हो। गैस सिलेन्डर, दाल, चावल, किराए और ज़रूरत की लगभग हर चीज़ के दाम में जब हर दूसरे महीने कुछ फीसदी का इज़ाफ़ा होता है, तो नज़र सीधे कैलेन्डर पर जाती है, कि वो कौन-सा महीना है जब तनख्वाह में बढ़ोत्तरी होगी। तनख्वाह में होनेवाली बढ़ोत्तरी भी तो अपने पीछे बॉस के दबाव और प्रदर्शन के तनाव की सौ फ़ीसदी की बढ़त के साथ आती है। ज़िंदगी का हर आंकड़ा आज की तारीख में प्रतिशत में तब्दील हो गया लगता है। तनख्वाह, मंहगाई, तनाव, ज़िम्मेदारियाँ और ज़िंदगी। इन सब के पीछे छुपा हुआ प्रतिशत का चिह्न अब और गाढ़ा और प्रत्यक्ष होने लगा है....   

No comments: