Tuesday, January 15, 2013

संवेदनशील होने की पहली शर्त खुद के लिए असंवेदनशील होना है???


वो बहुत ही संवेदनशील है। इस वजह से ही वो ये सबकुछ सहती रही। उसे लगा कि क्यों कोई और उसके लिए परेशान हो... वो किसी को कष्ट नहीं देना चाहती थी इसलिए वो सबकुछ अकेले ही झेल गई। घरों के अंदर, बंद कमरों में होनेवाली बरर्बता को सहन करनेवाली लड़कियों के लिए जब मैं ऐसे वाक्य सुनती हूँ तो मुझे खीज होने लगती है। ऐसा महसूस होता है कि एक संवेदनशील व्यक्ति खुद के प्रति कैसे इतना निर्मम हो सकता है। मैं बहुत छोटी ही थी जब अपनी एक रिश्तेदार के लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग सुनती थी। अरे वो कुछ बोलती नहीं है, उसे लगता है कि सब ऐसे ही धीरे-धीरे ठीक हो जाएगा। अरे, अब तो वो अपने बच्चे के लिए जीने लगी है। अरे, अब तो उसे आदत हो गई है। और, उसी बचपन में मैंने उनकी मौत की खबर भी सुनी। अपने सहन करने और तथाकथित संवेदनशील स्वाभाव के चलते उन्हें जलाकर मार दिया गया। और, वो कोई आखिरी नहीं थी जो ऐसी संवेदनशील निकली। हाँ मेरे लिए वो पहली ज़रूर थी। तब से लेकर आजतक ऐसी कई संवेदनशील महिलाओं से मैं मिल चुकी हूँ और कइयों की कहानियाँ लोगों के मुंह से सुन चुकी हूँ। लेकिन, तब से लेकर आज तक मैं संवेदनशील होने की परिभाषा और मायने समझने की कोशिश में जुटी हूं। मुझे समझ ही नहीं आता है कि कोई कैसे खुद के प्रति असंवेदनशील होते हुए दुनिया के प्रति संवेदनशील हो सकता है। क्योंकि, मैं मानती हूं कि मैं भी संवेदनशील हूँ। किसी को दुख देना, परेशान करना मुझे भी पसंद नहीं। दूसरों को दुखी देखकर मैं दुखी होती हूँ। लेकिन, मैं खुद पर होनेवाले हरेक अत्याचार, ग़लत व्यवहार या मनमानी का विरोध करती हूँ। मैं चुपचाप बैठी नहीं रहती हूँ। जो मुझे सही लगता है वो मैं करती हूँ। कई बार सामनेवाले की परवाह किए बिना। तो क्या खुद के लिए संवेदनशील होना मतलबी हो जाता है। क्या खुद की संवेदनाओं की चिंता करना मुझे मतलबी बना देता है... क्या संवेदनशील होने की पहली शर्त खुद के लिए असंवेदनशील होना है...   

1 comment:

राजन said...

ये देखना जरूरी है कि उन महिलाओं के पास कोई दूसरे विकल्प भी है या नहीं।जिसके पास विकल्प नहीं होते उसे तो सहना ही पड़ता है।दूसरा कारण ये भी है कि हमारा समाज महिलाओं को अपनी परवाह करना सिखाता ही कहाँ है।उसका कोई अलग अस्तित्व नहीं बल्कि उसे परिवार के लिए ही सोचना सिखाया जाता है।यही कारण है कि महिलाएँ सब सह लेती हैं।इसका संवेदनशील होने न होने से कोई लेना देना नहीं है।कई महिलाएँ हैं जो अपनों की ज्यादती तो सह लेती है लेकिन बाहर वालों की नहीं।यहाँ तक कि बहुत सी महिलाएँ ऐसी हैं जो पति का विरोध नहीं करती लेकिन बाकी घरवालों से बराबरी पर लडती हैं।आपने पोस्ट में केवल महिलाओं की बात की इसलिए मैंने भी केवल उनके बारे में ही टिप्पणी की है।