Monday, September 23, 2013

क्राइम पेट्रोल...

वैसे तो टेलीविजन पर आ रहे हरेक कार्यक्रम के बारे में जानकारी रखना चाहिए भले ही वो अच्छा लगे या बुरा। लेकिन, कुछ कार्यक्रम ऐसे हैं जिन्हें देखना मेरे हिसाब से ज़रूरी हो जाता है। क्राइम पेट्रोल एक ऐसा ही कार्यक्रम है। दिल्ली में पिछले साल हुए गैंग रेप पर बना एपिसोड तो खास तौर पर। अपराधियों और अपराधों को दर्शाता ये कार्यक्रम बाक़ियों की तरह डराता नहीं है। अपराध या अपराधियों को महिमामण्डित नहीं करता है। इस सप्ताहांत में दिखाए गए एपिसोड से इस बात की और पुष्टि होती है। अपराध की भयावहता को इस कार्यक्रम में एक हद तक दिखाया जाता है। उतना ही जितने से दर्शक ये समझ जाए कि क्या हुआ होगा। अपराध का अंदाज़ा लग जाना भी एक सामान्य इंसान के रौंए खड़े कर सकता हैं। हालांकि इस कार्यक्रम में पुलिस को एक हीरो के रूप में दिखाया जाता है। फिर भी जहाँ वो ग़लत नज़र आती है उसे भी बारीकी से रेखांकित कर दिया जाता हैं। कार्यक्रम की रुपरेखा तैयार करनेवाली टीम बधाई की पात्र है। सालों से चल रहे इस कार्यक्रम का कोई भी अंक उठा लिजिए आखिर में एक सीखवाली बात ज़रुर मिल जाएगी। क्राइम नेवर पे (crime never pays) की टैग लाइन के साथ लगभग दस साल पहले शुरु हुए इस कार्यक्रम में अनूप सोनी की एंकरिंग एक जान डालती है। लेखकों की टीम बिना किसी सनसनी के सीधे और सिखानेवाले लहेज़े में पूरे कार्यक्रम को लिखते है। खबरिया चैनलों पर आनेवाले डरावने क्राइम शो से इतर इस शो को देखकर आप एक बार डरेंगे ज़रुर लेकिन, खत्म होने तक एक उम्मीद भी आपके मन में जाग जाएगी। एक सामान्य कार्यक्रम के रुप में शुरु हुए इस कार्यक्रम से मेरी उम्मीदें दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। अच्छे लेखकों और प्रोडक्शन टीम की जुगलबंदी कैसे एक शो को टेलीविज़न इतिहास में जगह दिला सकती हैं क्राइम पेट्रोल इसका एक उदाहरण है।

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