Saturday, June 5, 2021

विश्व पर्यावरण दिवस विशेष: राजा दुबे

पर्यावरण संरक्षण आज भी विश्व की सर्वोच्च प्राथमिकता है


पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में प्रतिवर्ष
पाँच जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का निश्चय संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने के लिये वर्ष 1972 में किया था। इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पाँच से सोलह जून तक आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन में चर्चा के बाद प्रतिवर्ष 05 जून को- " विश्व पर्यावरण दिवस" मनाने का संकल्प लिया गया। पहला विश्व पर्यावरण दिवस 05 जून 1974 को ही विश्व में मनाया गया था। वैश्विक सहभागिता के लिये आरम्भ में मुख्य आयोजन संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय  न्यूयार्क में ही होता था। मगर वर्ष 1987 में इसके केंद्र को बदलते रहने का सुझाव सामने आया और उसके बाद से ही इसके आयोजन के लिए अलग अलग देशों को चुना जाता है। इस आयोजन में हर साल एक सौ तिरतालिस से अधिक देश हिस्सा लेते हैं और इसमें कई सरकारी, सामाजिक और व्यावसायिक संगठन, पर्यावरणविद् और विषय विशेषज्ञ पर्यावरण की सुरक्षा, समस्या आदि विषय पर बात करते हैं। पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से यह एक  महत्वपूर्ण दिन है इस दिन ही पूरा विश्व पर्यावरण संरक्षण के मार्ग में आने वाली चुनौतियों के समाधान की राह खोजता है। विश्व पर्यावरण दिवस जनसामान्य में  पर्यावरण के प्रति जागरुकता  बढ़ाने के लिये संयुक्त राष्ट्र द्वारा संचालित‌ दुनिया का सबसे बड़ा वार्षिक आयोजन है। इसका मुख्य उद्देश्य हमारी प्रकृति की रक्षा के लिए जागरूकता बढ़ाना और दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे  पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर नज़र रखना हैं।



पर्यावरण के घटक को समझने से ही पर्यावरण का संरक्षण सुगम होगा

पर्यावरण संरक्षण से पूर्व यह जानना जरुरी है कि पर्यावरण के घटक क्या हैं क्योंकि इसी से पर्यावरण का संरक्षण सुगम होगा। पर्यावरण के जैविक संघटकों में सूक्ष्म जीवाणु से लेकर कीड़े-मकोड़े, सभी जीव-जंतु और पेड़-पौधों के अलावा उनसे जुड़ी सारी जैव क्रियाएं और प्रक्रियाएं भी शामिल हैं। जबकि पर्यावरण के अजैविक संघटकों में निर्जीव तत्व और उनसे जुड़ी प्रक्रियाएं आती हैं, जैसे पर्वत, चट्टानें, नदी, हवा और जलवायु के तत्व इत्यादि होते हैं। सामान्य अर्थों में यह हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले सभी जैविक और अजैविक तत्वों, तथ्यों, प्रक्रियाओं और घटनाओं से मिलकर बनी इकाई है। यह हमारे चारों ओर व्याप्त है और हमारे जीवन की प्रत्येक घटना इसी पर निर्भर करती और संपादित होती हैं। मनुष्यों द्वारा की जाने वाली समस्त क्रियाएं पर्यावरण को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं। इस प्रकार किसी जीव और पर्यावरण के बीच का संबंध भी होता है, जो कि अन्योन्याश्रि‍त है। मानव हस्तक्षेप के आधार पर पर्यावरण को दो भागों में बाँटा जा सकता है, जिसमें पहला है प्राकृतिक या नैसर्गिक पर्यावरण और मानव निर्मित पर्यावरण। यह विभाजन प्राकृतिक प्रक्रियाओं और दशाओं में मानव हस्तक्षेप की मात्रा की अधिकता और न्यूनता के अनुसार है।पर्यावरणीय समस्याएं जैसे प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन इत्यादि मनुष्य को अपनी जीवनशैली के बारे में पुनर्विचार के लिये प्रेरित कर रही हैं और अब पर्यावरण संरक्षण और पर्यावरण प्रबंधन की आवश्यकता महत्वपूर्ण है। आज हमें सबसे ज्यादा जरूरत है पर्यावरण संकट के मुद्दे पर आम जनता और सुधी पाठकों को जागरूक करने की।

स्टॉकहोम पर्यावरण सम्मेलन और भारतीय प्रधानमंत्री का  सम्बोधन

पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर वर्ष 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्टॉकहोम (स्वीडन) में विश्व भर के देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया था। इसमें एक सौ उन्नीस देशों ने भाग लिया था और पहली बार पर्यावरण संरक्षण के परिप्रेक्ष्य में एक ही पृथ्वी का सिद्धांत मान्य किया गया था। इसी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनाइटेड नेशन्स इनवायरमेंट प्रोग्राम) बनाया गया था और प्रतिवर्ष  पाँच  जून को विश्व पर्यावरण दिवस आयोजित करके नागरिकों को प्रदूषण की समस्या से अवगत कराने का निश्चय किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाते हुए राजनीतिक चेतना जागृत करना और आम जनता को प्रेरित करना था। इस पर्यावरण सम्मेलन में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने "पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति एवं उसका विश्व के भविष्य पर प्रभाव" विषय पर व्याख्यान दिया था। पर्यावरण-सुरक्षा की दिशा में यह भारत का प्रारंभिक कदम था और  तभी से हम प्रति वर्ष पाँच जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाते आ रहे हैं।

और तीन साल पहले जब भारत को विश्व पर्यावरण दिवस की मेजबानी मिली

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तीन साल पहले अपने लोकप्रिय रेडियो- टीवी कार्यक्रम- "मन की बात" में यह कहा था कि वर्ष 2018 में विश्व पर्यावरण दिवस की मेजबानी भारत को मिलना जलवायु परिवर्तन संबंधी मुद्दों पर भारत की नेतृत्व क्षमता को विश्व समुदाय द्वारा स्वीकार करने का स्पष्ट संदेश है। इस दौरान उन्होंने देशवासियों से प्लास्टिक के प्रयोग को नकारने की भीअपील भी की थी। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर भारत की मेजबानी में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा आयोजित पाँच दिवसीय समारोह में प्रधानमंत्री मोदी नेे भारत द्वारा पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में किये जा रहे कार्यों से विश्व समुदाय को भी अवगत भी कराया था।

पर्यावरण संरक्षण के  विभिन्न पक्षों को परिभाषित करते हैं तयशुदा लक्ष्य

विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रतिवर्ष एक लक्ष्य का निर्धारण
संयुक्त राष्ट्र संगठन द्वारा किया जाता है इसे- "थीम ऑफ दी ईयर" कहा जाता है । वर्ष 2021 में विश्व पर्यावरण दिवस की थीम है- "सब मिलकर फिर से कल्पना करें, फिर से बनाएँ फिर से पुनर्स्थापित करें", इस लक्ष्य का मंतव्य पर्यावरण प्रदूषण से मुक्त विश्व के निर्माण , ऐसे विश्व की कल्पना करना और ऐसे विश्व को पुनर्स्थापित करना है। वर्ष 2021 में विश्व पर्यावरण दिवस का आयोजन पाकिस्तान में हुआ जिसमें इस लक्ष्य को लेकर गंभीर विचार विमर्श हुआ। वस्तुत: विश्व पर्यावरण दिवस पर तय की गई थीम उस लक्ष्य को पारिभाषित करती है जो पर्यावरण संरक्षण के लिए तय किये जाते हैं। विश्व पर्यावरण दिवस की पिछले दस सालों की थीम की यदि हम बात करें तो वर्ष 2020 की थीम थी- जैव विविधता का जश्न मनाएं, वर्ष 2019 की थीम थी- वायु प्रदूषण को हराओ, वर्ष 2018 की थीम थी- प्लास्टिक प्रदूषण को हराओ, वर्ष 2017 की थीम थी- लोगों को प्रकृति से जोड़ना- शहर में और जमीन पर, ध्रुवों से भूमध्य रेखा तक और वर्ष 2016 की थीम थी- जीवन के लिए जँगली हो जाओ अर्थात् जँगल को सर्वांग स्वरुप को अपनाओ। इसी परिप्रेक्ष्य में वर्ष  2015 की थीम थी एक विश्व, एक पर्यावरण, वर्ष 2014 की थीम थी पर्यावरण की दृष्टि से छोटे द्वीप विकसित राज्य होते है और अपनी आवाज उठाओ, ना कि समुद्र स्तर। वर्ष 2013 की थीम थी- सोचो, खाओ, बचाओ और नारा था अपने फूडप्रिंट को घटाओ, वर्ष 2012 की थीम थी- हरित अर्थव्यवस्था क्यों इसने आपको शामिल किया है? वर्ष  2011 की थीम थी- जंगल: प्रकृति आपकी सेवा में और वर्ष 2010 की थीम थी- बहुत सारी प्रजाति,  एक ग्रह, और  एक भविष्य।

कोविड-19 महामारी के परिप्रेक्ष्य में पर्यावरण के बदलाव पर भी विचार हो

पहले भी जब-जब इस प्रकार की भयानक महामारियां आई हैं, तब-तब पर्यावरण ने सकारात्मक करवट ली है।  कोविड-19 महामारी के परिप्रेक्ष्य में पर्यावरण में आ रहे इस बदलाव पर भी विचार होना चाहिए। कोरोना संक्रमण काल में प्रकृति का यह बदला हुआ रुप मानवीय जीवन के लिए भले ही क्षणिक राहत वाला हो, परंतु जब संक्रमण का खतरा पूरी तरह खत्म हो जाएगा, तब क्या पर्यावरण की यही स्थिति बरकरार रह पाएगी? यह एक बड़ा सवाल विश्व के सामने आयेगा। जब सभी देशों के लिए विकास की रफ्तार को तेज करना न केवल आवश्यक होगा, बल्कि मजबूरी भी होगी, तब क्या ऐसे कदम उठाए जाएंगे जो प्रकृति को बिना क्षति पहुंचाए सतत विकास की ओर अग्रसर हो सकेंगे। यह सवाल इस विश्व पर्यावरण दिवस पर स्वाभाविक रुप से उठाया गया। वर्तमान स्थिति को प्रकृति की ओर से दी हुई चेतावनी समझनी चाहिए जो मनुष्य की जीवन शैली और विकास प्रक्रिया के तौर-तरीकों को बदलने का अवसर प्रदान करती है। महामारी के बाद आर्थिक विकास की रफ्तार को बढ़ावा देने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का बड़े पैमाने पर अमर्यादित दोहन भी किया जाता है। ऐसे में कोरोना महामारी से उत्पन्न अल्पकालिक पर्यावरणीय सुधार से बहुत अधिक खुश होने की जरूरत नहीं है, बल्कि मानव, प्रकृति और आर्थिक विकास के अंतर्संबंधों को नए सिरे से परिभाषित करने की आवश्यकता है। एक और विचारणीय मुद्दा यह भी है कि संकट के इस दौर में मनुष्य के अति- भौतिकवाद, उत्पादनवाद और उपभोगवाद को विकास का पर्याय मान लेने की मानसिकता पर भी मंथन होना चाहिए। आधुनिकता की चकाचौंध से लोगों में व्यक्तिवाद और सुखवाद की प्रवृत्ति बढ़ी है। मानवीय उत्थान के लिए तो ये चीजें अच्छी लगती हैं, लेकिन नई-नई वैज्ञानिक तकनीकों द्वारा पारिस्थितिकी तंत्र को नियंत्रित करने की मनोवृत्ति ने पर्यावरणीय विसंगति को जन्म दिया है उस पर भी गौर किया जाना चाहिए।

महत्वपूर्ण है भारत में पारित पर्यावरण संरक्षण अधिनियम

पर्यावरण संरक्षण को कानूनी तौर पर मजबूती प्रदान करने के लिए भारतीय संसद ने 19 नवंबर 1986 को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम पारित किया था। इस अधिनियम के अन्तर्गत पर्यावरण में जल, वायु, भूमि- इन तीनों से संबंधित कारक तथा मानव, पौधों, सूक्ष्म जीव, अन्य जीवित पदार्थ आदि को शामिल किया गया था। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के कई महत्त्वपूर्ण बिंदु हैं जैसे- पर्यावरण की गुणवत्ता के संरक्षण हेतु सभी आवश्यक क़दम उठाना ,पर्यावरण प्रदूषण के निवारण, नियंत्रण और उपशमन हेतु राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम की व्यापक  योजना बनाना और उसे क्रियान्वित करना, पर्यावरण की गुणवत्ता के मानक निर्धारित करना और पर्यावरण सुरक्षा से संबंधित अधिनियमों के अंतर्गत राज्य-सरकारों, अधिकारियों और संबंधितों के काम में समन्वय स्थापित करना। अधिनियम में ऐसे क्षेत्रों का परिसीमन करना भी शामिल हैं जहाँ किसी भी उद्योग की स्थापना अथवा औद्योगिक गतिविधियां संचालित न की जा सकें। उक्त-अधिनियम का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कठोर दण्ड का प्रावधान भी है।

एक वैश्विक सर्वेक्षण से साबित होता है अर्थ नहीं पर्यावरण प्रेमी हैं भारतीय

दुनिया में सबसे तेज़ीी से बढ़ रही अर्थव्यवस्थाओं में से एक भारत हरित अर्थव्यवस्था बनने का प्रयास कर रहा है। नए सर्वेक्षण में खुलासा हुआ है कि भारतीय लोग आर्थिक वृद्धि पर पर्यावरण रक्षा को मामूली रूप से प्राथमिकता देते हैं। अमेरिका की प्रमुख सर्वेक्षण एजेंसी ‘गैलप’ ने अपने ताजा सर्वेक्षण में कहा कि ज़्यादातर आबादी अर्थव्यवस्था से ज़्यादा पर्यावरण पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं। सर्वेक्षण करने वाली स्वैच्छिक संस्था गैलप की मानें तो भारत ने वैश्विक भूभाग पर हरित क्षेत्र को बढ़ाने के उल्लेखनीय प्रयास किए हैं। इसकी एक बानगी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली है, जहाँ हाल के वर्षो में हरित क्षेत्र में वृद्धि दर्ज की गई है। दिल्ली का लगभग 20 फीसदी हिस्सा वनों से ढका हुआ है। सरकार ने अगले कुछ सालों में इसे बढ़ाकर पच्चीस  फीसदी करने का लक्ष्य रखा है।

राजा दुबे 


 

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