हिन्दी फिल्मों में ट्रेजेडी किंग के नाम से अपनी अलहदा पहचान बनाने वाले दिलीप कुमार का इण्टरव्यू लेना आसान काम नहीं था। जब मुझे नईदुनिया वालों ने यह काम सौंपा तो उन्हें लगा होगा मैं आसानी से यह काम कर लूंगा और मुझे भी लगा था मेरे लिये यह सहज काम होगा। मैंने जब अपने तईं कोशिश की तो मेरी पत्रकार वाली पेशेवर व्यस्तता और दिलीप सा'ब की भी व्यस्तता आड़े आई। इसी बीच बम्बई के मेरे एक मित्र का फोन आया- "दादा क्या आप ट्रेन में उनका इन्टरव्यू ले सकते हैं?" पहले तो मैं चौंका फिर कुछ सोचकर हामी भरी। जिस दिन दिलीप सा'ब डीलक्स एक्सप्रेस से बम्बई जा रहे थे। उसी यात्रा के दौरान मुझे इण्टरव्यू की अनुमति मिल गई। जिस दिन इन्टरव्यू होना था उस दिन का डीलक्स का प्रथम श्रेणी का रतलाम से बम्बई का टिकट कटवाकर मैं दिलीप सा'ब के सामने पहुंंचा। दिलीप सा'ब ने गर्मजोशी से मेरा हाथ पकड़ा और बोले- "आ गये प्रकाश बाबू, बैठों बात शुरु करते है।" मैं उनकी बर्थ के सामने वाली बर्थ पर बैठने से संकोच कर रहा था। तभी वे बोले बैठ जाओ बरखुरदार वो बर्थ भी अपनी है। और मैं वहां बैठकर रिकार्डिंग की व्यवस्था जमाने लगा। मैं इन्टरव्यू शुरु करता उसके पहले उन्होंनेे सवाल किया- "तुम मेरे साथ सफर कर रहे हो, अभी
टिकट चेकर आयेगा, तुम्हारे पास टिकट है न! "मैं मुस्कराया बोला- "मैं पत्रकार हूँ सर, भारतीय रेल मुझे काम्प्लीमेंटरी कूपन देती है, मगर आज आपके इन्टरव्यू को यादगार बनाने के लिये मैंने टिकट लिया है, रतलाम से बम्बई तक का।" दिलीप सा'ब ने फिर पूछा-"तो तुम बम्बई तक सवाल करते रहोगे?" मैंने कहा- नहीं जब तक आप चाहेंगे। वे सवाल का जवाब देते समय यादों में खो जाते, तब उन्हें फिर से अगले सवाल तक लाने की मुकम्मल कोशिश करनी होती। एक घण्टे से भी अधिक समय तक चले उस इण्टरव्यू को मैं अपनी पत्रकारिता का एक बड़ा हासिल मानता हूँ। और एक बात इण्टरव्यू हो जाने के बाद वो बोले- "बरखुरदार मुझे हिन्दी बोलने में महारत नहीं है, मैं उर्दू ही बोल और समझ पाता हूँ, तुम इस इन्टरव्यू का हिन्दी में तर्जुमा करवा लेना" तब मैंने कहा आप जो उर्दू बोलते हैं उस उर्दू को देश में सभी लोग समझते हैं" तब वे बोले थे- "वाकई!" और एक खुशी उनके चेहरे पर छाई जो आज भी मेरी आँखों में कैद हैं ।
(जैसा कि नईदुनिया के रतलाम सम्वाददाता और साक्षात्कार विधा पर अपनी पकड़ के लिए विख्यात
श्री प्रकाश उपाध्याय ने मुझे बताया।)
राजा दुबे
(जैसा कि नईदुनिया के रतलाम सम्वाददाता और साक्षात्कार विधा पर अपनी पकड़ के लिए विख्यात
श्री प्रकाश उपाध्याय ने मुझे बताया।)
राजा दुबे
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